Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 315
________________ क्या आज के संदर्भ में भी महावीर सार्थक हैं श्री भंवरमल सिंघी ..."hnawinwwwan दर्शन को सार्थकता : सुप्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक पोसवाल्ड स्पेंगलर ने अपनी पुस्तक 'डिक्लाइन ऑफ द वेस्ट' में लिखा है कि जो दर्शन या विचार हमारे समकालीन जीवन के प्रश्नों का समाधान नहीं करता, वह:प्राज के लिए कौड़ी काम का नहीं है। स्पेंगलर का यह कथन वास्तव में वढे महत्त्व का है । जो विचार आज काम का नहीं है, उसकी बात करना, उसका महत्त्व बखानना कोई अर्थ नहीं रखता, मैं स्वयं इस बात का कायल हूं। महावीर के विचारों और उपदेशों को भी मैं इसी मान्यता की कसौटी पर कस कर देखना और समझना चाहता हूं। मैंने जैन धर्म के अन्तर्गत जन्म लिया तथा धर्म के नाम पर उसी से मेरा सबसे पहले परिचय हुआ और उसके संस्कार भी मुझे मिले। इसीलिये मैं उसे मान कर चलता रहं और सही और गलत का भेद समझने के लिए आवश्यक विवेक-विश्लेपण से काम नहीं लू, यह धार्मिकता नहीं, धर्मान्धता ही होगी । ऐसा न मैं करता हूं न करना चाहता हूं और न ऐसा करना मुझे उचित ही लगता है । महावीरत्व की आवश्यकता : ____महावीर के सम्बन्ध में उक्त दृष्टि से विचार करने पर लगता है कि यदि देश और काल की परिवर्तनशील परिस्थितियों के अन्तराल को छोड़कर महावीर के द्वारा प्रतिपादित मूल जीवन-दृष्टि को देखें और समझे तो अवश्य ही मुझे लगता है कि उनकी दृष्टि आज भी सार्थक है, उनका बतलाया हुआ जीवन-मार्ग आज भी समाधान का मार्ग है, विकास और उन्नति का मार्ग है, व्यक्ति के लिए और समाज एवं मानवजाति के लिए भी । महावीर जिस युग में हुये, जिन परिस्थितियों में उनको कार्य करना पड़ा, तथा जिन समस्याओं के विरुद्ध उनकी संघर्ष-साधना की गई, उसमें बहुत कुछ परिवर्तन हो चुका है। उन्होंने हिंसा का जो रूप देखा था और उसके विरुद्ध उन्होंने जिस रूप में अहिंसा की साधना की थी, वह बाज नहीं है । किन्तु हिंसा तो वैसे ही बल्कि ज्यादा व्यापक और घनी होकर आज चारों तरफ फैली हुई है और व्यक्ति हर स्तर पर जीवन की अनेक-अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है । इस हालत में कहना न होगा कि जहां हिंसा है, कष्ट है, वहां महावीरत्व की आवश्यकता है ही।

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