Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 343
________________ भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य ३१६ पीछे यह अनुभवजन्य ज्ञान होने से महावीर ने सभी क्षेत्रों में सवको समता अपनाने को कहा है । अहिंसा के व्यवहार की उन्होंने जो प्रेरणा दी है, उसमें से निम्नलिखित बातें फलित होती हैं : धर्म की आराधना में लिंग एवं जातिभेद नहीं हो सकता न उम्र का ही कोई प्रश्न उठता है। यह आराधना जंगल में भी की जा सकती है और घर में भी । गृहस्थ और श्रमण घनदान और निर्धन दोनों ही धर्म की आराधना कर सकते हैं। महावीर के उपदेशों में साम्प्रदायिकता, जातीयता या किसी प्रकार की संकुचितता को स्थान नहीं है। यद्यपि वे तीर्थ के प्रवर्तक थे। तीर्थ एक सम्प्रदाय ही बनता है पर उनकी दृष्टि में जनत्व प्रधान था। 'जिन' का उपासक जैन । अपने आपको जीतनेवाला 'जिन' । इन मूल्यों की प्रतिष्ठा उन्होंने की। प्राणीमान दुःख से भयभीत है, त्रस्त है । इस दुःख से त्राण पाने का मार्ग कुछ महापुरुषों ने ज्ञान को माना क्योंकि अजान के कारण अधिकांश दुःखों की उत्पत्ति होती है । ज्ञान होने पर दुःख दूर किए जा सकते हैं । परन्तु महावीर का अनुभव यह था कि ज्ञान हो जाय तो 'मी उस ज्ञान पर निष्ठा न हो और तदनुकूल प्राचार न हो तो दुःख से मुक्ति नहीं होती। इसलिए समता धर्म तभी मोक्ष देता है जब सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र हो । इसकी जो आराधना करते हैं वे अन्य सम्प्रदाय या वेश में भी मुक्ति पा सकते हैं । शास्त्रीय भाषा में कहा गया है अन्य लिंग-सिद्ध, गृह-लिंग-सिद्ध । उन्होंने यह नहीं कहा कि मेरी शरण में आयो, मैं तुम्हारा उद्धार कर दूंगा। समता का उन्होंने यहां तक विकास किया कि हर प्राणी में परमात्मा बनने की क्षमता है । अपने सुख-दुःख का कर्ता स्वयं वही है। भगवान ने मनुप्य को ईश्वर के स्थान पर प्रतिष्ठित किया और बताया कि मानवता का चरम विकास ही ईश्वरत्व है । जो मनुष्य विकास करता है, वह जीव से शिव, नर से नारायण और श्रात्मा से परमात्मा बन जाता है । उन्होंने जिन मूल्यों की स्थापना की उनमें प्रमुख थे समता और स्वावलम्बन । उन्होंने स्वाधीनता का महत्व प्रस्थापित कर हर व्यक्ति को स्वाधीन वनकर विकास करने की प्रेरणा दी। यहां तक कि ईश्वर की गुलामी से भी मुक्त किया। चूंकि समता और स्वावलम्बन पर आधारित धर्म होने से स्वाभाविक ही वह जन-जन का धर्म बने, ऐसी भापा में कि लोगों की समझ में आ जाय, इस प्रकार से उपदेश दिया । प्राणीमात्र के प्रति संयम का व्यवहार करने की बात कह कर उन्होंने जनता के समक्ष नये मूल्यों की स्थापना की। २. इस लम्बी अवधि में कई महान् जैन आचार्य हुए जिन्होंने भगवान् के मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने का प्रयत्न किया । जन-मानस पर उसका प्रभाव भी पड़ा है । मांसाहार का त्याग जो भारतीयों में पाया जाता है, उसका कारण जैनी हैं, यह वात जैन विद्वान् और चिन्तक भी मानते हैं । जैन धर्मानुयायियों ने अपने तत्त्वों के प्रचार में कभी आक्रमण को

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