Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 347
________________ भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य ३२३ "खाजला है। PALACEeneKaise wnemapan तथा जनजीवन में लाने के लिये प्रयत्नशील होना पड़ेगा। संसार की आज की समस्याएं सुलझाने में उन तत्त्वों का प्रयोग ही भगवान् के प्रति सच्ची श्रद्धांजली है । अल्वर्ट स्वाइजर इस युग के महान् कर्मयोगी तथा चिन्तक माने जाते हैं। उन्होंने 'रेवरेन्स फार लाइफ' की बात दीर्घ चिन्तनं व साधना के बाद खोजी, जो भगवान महावीर के तत्त्वों की समर्थक है । आज का वैज्ञानिक, चिन्तक और सेवक अपने सुझाव अनुभव के आधार पर कहता है कि इस हिंसा से मेरे जीवन में जहां पग-पग पर हिंसा होती है, अहिंसक कैसे रहा जाय, जीवन को आदर कैसे दिया जाय ? इस विषय में स्वाइत्जर का कथन है यदि मेरा काम एक प्याले पानी से चल जाता है तो मुझे एक बूंद भी अधिक नहीं गिराना चाहिए, यदि मेरा एक टहनी से काम चल जाता है तो दूसरी न तोडू, यह सावधानी रखकर जीवन के प्रति आदर प्रगट किया जा सकता है। क्या उनकी यह बात भगवान महावीर के उस उपदेश से मिलती नहीं है कि जब उनसे भिक्ष ने पूछा कि मैं कैसे चलू, कैसे वैठू', कैसे खाऊँ, कैसे सोऊ और कैसे बोलू-जिससे पाप कर्म का बन्धन न हो । तव भगवान् महावीर ने ये सारी क्रियाएं यतनापूर्वक करने को कहा था। सार्च आज का बहुत बड़ा चिन्तक माना जाता है । फ्रायड आदि पूर्व मानस शास्त्रियों के विचार का उस पर प्रभाव है। इन सब विचारकों ने मानव के विकास में उसकी प्रेरणा, . या इन्सटिक्ट पर बड़ा बल दिया है। इसमें सन्देह नहीं कि मानव जीवन उसकी प्रेरणा से प्रभावित है और उसके विकास में उसकी प्रेरणा या इंस्ट्रिक्ट का खयाल न रखा । जाय तो कुण्ठा निर्माण होकर विकास में वाधा पहुंचती है। भगवान् महावीर ने इंस्टिक्ट, प्रेरणा या वृत्ति को आत्मविकास में उपयोगी माना था और विशिष्टता को विशिष्ट बनाने । की बात कही थी। जिस व्यक्ति में जो विशेषता हो, उसको बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात की ओर ध्यान देने को कहा था कि जैसे तुम्हारी प्रेरणा तुम्हें प्रिय है। और तुम उसे बढ़ाना चाहते हो वैसे ही दूसरे की प्रेरणा, इंस्टिक्ट या विशेषता में बाधक न । बने । जैसे तुम अपनी इच्छानुसार करने के लिए स्वाधीन हो वैसे दूसरे की स्वाधीनता का भी ख्याल रखो । इसलिए अपनी विशेषता बढ़ाते समय दूसरों की विशिष्टता बढे उसमें . बाधा न पहुंचे, इसका ध्यान रखो और इसके लिए संयम को उन्होंने मानव के विकास में महत्वपूर्ण स्थान दिया था। ४. मैं महावीर-की विचारधारा को व्यापक तथा सभी काल व क्षेत्रों में उपयोगी मानता हूं। संसार की आज की समस्याओं को सुलझाने के लिए वह सक्षम है। किन्तु उसे अपने तक सीमित बना रखने से यह कार्य नहीं होगा। उसे व्यापक बनाना होगा । जैसे भगवान महावीर और उनके प्राचार्यों ने उसे जनधर्म के रूप में व्यापक बनाने में उस समय की जनभापा का उपयोग किया था, उसके कल्याण कारी रूप का लोगों को दर्शन कराया, हमें भी वैसा करना होगा। विज्ञान के क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है। विज्ञान की शोधों से जनजीवन में, भारी परिवर्तन आया है। उसे ध्यान में रखकर भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठित मूल्यों के प्रसार के लिए प्रयत्न करने होंगे । यदि इस विषय में दृष्टि स्पष्ट हो जाती है तो हमारा काम आसान हो जाता है । downloadnanities 7 -- -

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