Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 230
________________ २०६ वैज्ञानिक संदर्भ जैन परमाणुवाद और विज्ञान : पुदगल की संरचना को लेकर जैन दर्शन ने जो विश्लेपण प्रस्तुत किया है, वह पदार्थ के सूक्ष्म तत्वों (कणों) की ओर संकेत करता है । आधुनिक विज्ञान ने पदार्थ की सूक्ष्मतम इकाई को परमाणु कहा है जिसके संयोग से 'अणु' बनता है और इन अणुत्रों के संघात से ऊतक (Tissue) का निर्माण होता है । जैविक संरचना में कोप (Cell) मूढमतम इकाई है जिनके संयोग से अवयव (Organ) का निर्माण होता है। इस प्रकार, समस्त जैविक और अजैविक संरचना में अणुओं, परमाणुओं, कोषों और अवयवों का क्रमिक साक्षात्कार होता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि समस्त सृष्टि का ऋमिक विकास हुआ है । जैन प्राचार्यों की परमाणु और स्कंध धारणाओं में उपयुक्त तथ्यों का समावेश प्राप्त होता है। जैन मतानुसार परमाणु पदार्थ का अंतिम रूप है जिसका विभाजन संभव नहीं है । वह इकाई रूप है जिसकी न लम्बाई, चौड़ाई और न गहराई होती है, तथा जो स्वयं ही आदि, मध्य तथा अत है । आधुनिक विज्ञान ने परमाणु को विभाजित किया है और उसकी आंतरिक संरचना के स्वरूप पर प्रकाश डाला है। परमाणु में अन्तनिहित इलेक्ट्रान, प्रोटान, पाजिट्रान, न्यूट्रान आदि सूक्ष्मतम करणों की जानकारी ग्राज के विज्ञान ने दी है और साथ ही, सौर मंडल की संरचना के समान परमाणु को संरचना को स्पष्ट किया है। इस वैज्ञानिक प्रस्थापना के द्वारा यह दार्शनिक तथ्य भी प्रकट होता है कि जो पिंड (Microcasm) परमाणु में है, वहीं ब्रह्माण्ड में है जो योग साधना का एक महत्त्वपूर्ण प्रत्यय है। अतः मुनि श्री नगराजजी ने जो यह मत रखा है कि विज्ञान में परमाणु का 'सूक्ष्म रूप' नहीं मिलता है जैसा कि जैन दर्शन में यह मत उपयुक्त विवेचन के प्रकाश में पूर्ण सत्य नहीं जात होता है । तथ्य तो यह है कि अधुनातन वैज्ञानिक प्रगति में परमाणु की सूक्ष्मतम व्याख्या प्रस्तुत की है जो प्रयोग और अनुभव की सीमाओं से प्रमाणित हो चुकी है । स्कंध की धारणा विज्ञान को अणु (Molecule) भावना से मिलती है क्योंकि दो से अनंत परमाणुओं के संघात को स्कंध या करण की संज्ञा विज्ञान तथा जैन दर्शन दोनों में दी गई है। स्कंध निर्माण प्रक्रिया: अव प्रश्न उठता है कि परमाणु स्कंध रूप में कैसे परिणत होता है ? इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर विज्ञान तथा जैन मत ने अपने-अपने तरीके से दिया है जिसमें अनेक समानताएं हैं । जैन मत और विज्ञान में एक सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों में परमाणुओं के योग से स्कंव का निर्माण होता है जिसका हेतु धन और ऋण विद्य त् है (+ और -) जिनके परस्पर आकर्पण से स्कंध तथा पदार्थ का सृजन होता है। जैन आचार्यों ने परमागुणों के स्वभाव को स्निग्ध तथा रूक्ष (+ और ----) माना है जिनमें रूक्ष और स्निग्ध परमाणु विना शर्त बंध जाते हैं। इसके अतिरिक्त रूक्ष-परमाणु रूक्ष से तथा स्निग्ध परमाणु स्निग्ध से तीन से लेकर यावत् अनंत गुणों का बंधन प्राप्त करते हैं । परमाणुओं के ये दो विपरीत स्वभाव उनके आपसी वंधन के कारण हैं । आधुनिक विज्ञान में पदार्थ के अन्तर्गत १. जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान, मुनि श्री नगराज, पृ० ८६ ।

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