Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 280
________________ २५६ सांस्कृतिक संदर्भ अथवा 'अकिरियादिटि' कहा गया है । इस प्रकार उनके मत में व्यक्ति की इच्छा-शक्ति का प्रपना कोई महत्त्व नहीं है। नियतिवादी होने के कारण गोशालक प्रचारित कर रहे थे कि "जीवन-मरण, सुख-दुख, हानि-लाभ, ये सब अनतिक्रमणीय हैं, इन्हें टाला नहीं जा सकता, वह होकर ही रहता है।" संजय वेलटिपुत्त अनिश्चय एवं संशय के चारों ओर चक्कर काट रहे थे। इनके अनुसार परलोक, अयोनिज प्राणी, शुभाशुभ कर्मों के फल आदि के विषय में निश्चितरूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। महावीर : मानवीय सौहार्द के आलोक : इस प्रकार जिस समय दर्शन के क्षेत्र में चारों ओर घोर संशय, अनिश्चय, तर्क, वितर्क, प्रश्नाकुलता व्याप्त थी, प्राचारमूलक सिद्धान्तों की अवहेलना एवं उनका तिरस्कार, करने वाले चिन्तकों के स्वर सुनायी दे रहे थे, मानवीय सौहार्द एवं कर्मवाद के स्थान पर घोर भोगवादी, अक्रियावादी एवं उच्छेदवादी वृत्तियां पनप रही थीं, जीवन का कोई पथ स्पष्ट नहीं दिखायी दे रहा था, उस समय भगवान महावीर ने प्राणी मात्र के कल्याण के लिए, अपने ही प्रयत्लों द्वारा उच्चतम विकास कर सकने का आस्थापूर्ण मार्ग प्रशस्त कर; अनेकांतवाद, स्याद्वाद, अपरिग्रहवाद एवं अहिंसावाद आदि का सन्देश देकर नवीन आलोक प्रस्फुटित किया। भौतिक विज्ञान की उन्नति : आज भी भौतिक विज्ञान की चरम उन्नति मानवीय चेतना को जिस स्तर पर ले गयी है वहां पर उसने हमारी समस्त मान्यताओं के सामने प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है। प्राचीन मूल्यों के प्रति मन में विश्वास नहीं रहा है । महायुद्धों की आशंका, प्राणविक युद्धों की होड़ और यांत्रिक जड़ता ने हमें एक ऐसे स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां सुन्दरता भी भयानक हो गयी है । डब्ल्यु. बी. ईट्स की पंक्तियां शायद इसी परिवर्तन को लक्ष्य करती हैं All changed, changed utterly A terrible beauty is born. वैज्ञानिक उन्नति की चरम सम्भावनाओं से चमत्कृत एवं प्रौद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजरने एवं पलने वाला आज का आदमी इलियट के "वेस्टलैंड' के निवासी की भांति जड़वत् एवं यन्त्रवत् होने पर विवश होता जा रहा है। रूढ़िगत धर्म के प्रति आज का मानव किंचित भी विश्वास को जुटा नहीं पा रहा है। समाज में परस्पर घृणा, अविश्वास, अनास्था एवं संत्रास के वातावरण के कारण आज अनेक मानवीय समस्याएं उत्पन्न होती जा रही हैं । भरी भीड़ में व्यक्ति अकेला होता जा रहा है, जुड़कर भी अपने को समाज से तोड़ने का उपक्रम करना इसी की निशानी है

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