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वैज्ञानिक शक्ति मूल्य और ज्ञान-मूल्य :
आधुनिक विज्ञान और द्रव्य विषयक जैन धारणा • डॉ० वीरेन्द्रसिंह
याधुनिक युग विज्ञान का युग है । विज्ञान एक ऐसी सवल मानवीय क्रिया ग्रथवा
अनुशासन है जिसने ज्ञान के क्षेत्रों को केवल प्रभावित ही नहीं ब्रह्माण्ड के रहस्यों को एक तार्किक रूप में उद्घाटित किया है। हैं, जो दो प्रकार के मूल्यों की सृष्टि करते हैं - एक शक्ति मूल्य श्रीर दूसरे प्रेम या चिंतनमूल्य । जहां तक शक्ति मूल्य का सम्बन्ध है, वह तकनीकी विकास से उद्भूत है जो अन्तराष्ट्रीय घरातल पर प्रतिस्पर्द्धा का विषय बनता जा रहा है । इसके द्वारा शक्ति और स्वार्थ मूल्यों की इस कदर वृद्धि होती जा रही है कि आधुनिक मानस विज्ञान को केवल शक्तिअर्जन का पर्याय मानता जा रहा है । दूसरी ओर विज्ञान का वह महत्त्वपूर्ण पक्ष है जो प्रेम-मूल्य या ज्ञान-मूल्य का सृजन करता है जिसकी ओर हमारा ध्यान कम जाता है । सत्य रूप में, विज्ञान का यह ज्ञान मूल्य ही 'प्रतिमानों' का सृजन करता है जो मानवीय संदर्भ को श्रर्थवत्ता प्रदान करता है क्योंकि प्रत्येक मानवीय क्रिया, मानव और उससे संबंधित विश्व संदर्भ के लिए ही है । यह ज्ञान प्राप्त करने का मनोभाव विज्ञान का भी लक्ष्य है । रहस्यवादी, प्रेमी, कलाकार सभी सत्यान्वेषी होते हैं, यह बात दूसरी है कि उनका अन्वेषण उस 'पद्धति' को स्वीकार न करता हो जो वैज्ञानिक अन्वेषण में स्वीकार की जाती है । इस कारण कवि और रहस्यवादी हमारे लिए किसी भी दशा में कम सम्मान के पात्र नही हैं। क्योंकि वैज्ञानिक के समान वे भी ज्ञान के अन्वेषी हैं । प्रेम के प्रत्येक स्वरूप के द्वारा हम 'प्रिय' के ज्ञान का साक्षात्कार करना चाहते हैं । यह साक्षात्कार 'शक्ति' प्राप्त करने के उद्देश्य से नहीं होता है, वरन् इसका सम्वन्ध प्रांतरिक उल्लास और ज्ञान के प्रायामों को उद्घाटित करने के लिए होता है ।' अतः 'ज्ञान' स्वयं में एक मूल्य है जो वैज्ञानिक ज्ञान के लिए भी उतना सत्य है जितना ग्रन्य ज्ञान क्षेत्रों के लिए । विज्ञान का आरंभ इसी प्रेम संबंध का रूप है क्योंकि वैज्ञानिक भी वस्तुनों, दृश्यों, ब्रह्माण्डीय पिंडों आदि से एकात्म स्थापित कर उनके 'रहस्य' का उद्घाटन करता है ।
१. द साइन्टिफिक इन्साइट, बर्ट्रेड रसेल, पृ० २०० ।
किया है, वरन् विश्व श्रीर वैज्ञानिक ज्ञान के दो पक्ष