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सामाजिक संदर्भ
किसी प्रकार की शंका होने पर तथा उत्सुकता होने पर निन्दा या आलोचना की भावना से नहीं प्रत्युत पूर्ण विनयवान होकर प्रश्न करना चाहिए।
गुरु द्वारा जो पाठ पढ़ाया गया है उस पर पूर्ण चिन्तन मनन करके उसका चरित्र और व्यवहार में अनुशीलन भी करना चाहिए।
___आदर्श विद्यार्थी पाठ के प्रति पूर्ण प्रीति अर्थात् रुचि अनुभव करता है । अरुचि या उदासीनता की भावना से कभी ज्ञानोपार्जन नहीं किया जा सकता ।
__ इसके अतिरिक्त भगवान ने इस बात पर विशेप बल दिया है कि शिक्षार्थी पांच व्रतों, चार भावनाओं एवं दश उत्तम धर्मो पर (जिनका उल्लेख शिक्षा का स्वरूप समझाते हुए किया गया है) यथाशक्ति चले। उसका सतत प्रयास यह रहना चाहिए कि वह जो कुछ सीख रहा है उस पर चलते हुए शनैः-शनैः अर्हन्त तुल्य बनने में सफलता प्राप्त करे।
यह दुहराने की आवश्वकता नहीं है कि भगवान महावीर द्वारा उपदेशित शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के सम्बन्ध में यहां जिस विचारधारा का वर्णन किया गया है वह अत्यन्त आदर्शवादी होते हुए भी इतनी व्यावहारिक है कि यदि उस पर चला जाय तो आज शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं का निश्चित समाधान ढूंढा जा सकता है ।