Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 9
________________ भद्रबाहुसंहिता "भृगुसूनुधरापुत्री शशिजेन समन्वितौ ॥" -श० ५० अ० 11-18 अर्थात्---शुक्र, मंगल और बुध इनका योग शनि के साथ अत्यन्त अशुभ कारक है । वर्तमान संहिता-ग्रन्थों में भी बुध और शानि का योग अत्यन्त अशुभ माना जाता है । महाभारत में 13 दिन का पक्ष अशुभ कारक कहा गया है चतुर्दशी पञ्चदशौं भूतपूर्वा तु षोडशीम् । इमां तु नाभिजानऽहममावस्यां त्रयोदशीम् ।। चन्द्रसूर्यावुभौ प्रस्तावकमासी प्रयोवशाम् । अर्थात्-व्यासजी अनिष्टकारी ग्रहों की स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि 14, 15 एवं 16 दिनों के पक्ष होते थे; पर 13 दिनों का पक्ष इसी समय आया है तथा सबसे अधिक अनिष्टकारी तो एक ही मास में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण का होना है और यह ग्रहणयोग भी त्रयोदशी यो दिन पड़ रहा है, अतः समस्त प्राणियों के लिए भयोत्पादक है । पहाभारत से यह भी ज्ञात होता है कि उस समय व्यक्ति के सुख-दुख्न, जीवन-मरण आदि सभी ग्रह-नक्षत्रों की गति स सम्बद्ध माने जाते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के दशवें प्रकरण में युद्धविषयक शकुन, जय-पराजय द्योतका निमित्तों का वर्णन है। यात्रा सम्बन्धी शकुनों का सविस्तार विवेचन भी मिलता है। हर्षचरित में बाण ने कालाशनी का आश्रय लेकर हर्ष के प्रयाण के फलस्वरूप शत्रुओं में होने वाले दुनिमित्तों की एक लम्बी मुची दी है । इस सूची से स्पष्ट है कि वाण के समय में संहिता-शास्त्र का पूर्णतया विकास हो गया था। बताया गया है 1 यमराज के दूतों की दांप की तहपाल हिरण इधर-उधर दीलने लगे। 2. आंगन में मधु-मयियों के छत्तों में उड़कर मधुमक्खियाँ भर गयौं । 3. दिम में शृगाली मुंह उठाकर रोने लगी। 4. जंगली कबूतर घरों में आने लगे। 5. उपवन वृक्षों में असमय में पुष्प-फल दिखलाई पड़ने लगे। 6. सभास्थान को खम्भों पर बनी हुई शालभंजिकाओं को आंसु बहने लगे। 7. योद्धाओं को दर्पण में अपने ही सिर धड़ से अलग होते हुए दिखलाई पड़े। ४. राजमहिषियों की चूड़ामणि में पैरों के निशान प्रकट हो गये। 9. चेटियों के हाथ के चमर छूटकर गिर गये। 10. हाथियों के गण्डस्थल भौरों से शून्य हो गये । }1. घोड़ा ने मानो यमराज की गन्ध से हरे धान का खाना छोड़ दिया ।

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