Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1 Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना 13 तेषां कालातिरेकेण ज्योतिषां च व्यतिक्रमात् । परचमे पञ्चमे वर्ष द्वौ मासावपजायतः ।। एषामभ्यधिका मासाः पञ्च च द्वादश क्षपाः। प्रयोदशनां वर्षाणामिति मे वर्तते मतिः ॥ –वि०प० ब० 52/3-4 इन श्लोकों में पांच वर्षों में दो अधिमास का जिक्र किया गया है । सिद्धान्त ज्योतिष के ग्रन्थों के प्रणयन के पूर्व संहिता-ग्रन्थों में अधिमारा वा निरूपण होने लगा था। गणितागत अधिमारा अधिशप और अधिशुद्धि का विचार होने के पूर्व पाँच वर्षों में दो अधिमासों की कल्पना संहिता के विषय के अन्तर्गत है । महाभारत के अनुशासन पर्व के 64वें अध्याय में समस्त नक्षत्रों की सूची देकर बतलाया गया है कि विस नक्षत्र में दान देने से किस प्रकार होता है । महाभारत काल में प्रत्येक मुहर्त का नामकरण भी व्यवहृत होता था तथा प्रत्येय मुहूर्त का सम्बन्ध भिन्न-भिन्न धार्मिक कार्यों से शुभाशुभ के रूप में माना जाता था । इस ग्रन्थ में 27 नक्षत्रों के देवताओं को स्वभावानुसार विधेय नक्षत्र के भावी शुभ एवं अशुभ का निर्णय किया गया है । गुभ नक्षत्रों में ही विवाह, युद्ध एवं यात्रा करने की प्रथा थी। युधिष्ठिर के जनम-समय का वर्णन करते हुए कहा गया है ऐन्द्र चन्द्रसमारोहे महतंऽभिजिदष्टमे । दिको मध्यगते सूर्ये तिथी पूर्णलि पूजिते । अर्थात् आश्विन शुक्ला पंचमी के दोपहर को अप्टन अभिजित् नहर्त में, सोमवार के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म हुआ। महाभारत में कुछ ग्रह अधिव अरिष्ट कारखा बतलाये गये हैं; विशेषतः शनि और मंगल को अधिक दुष्ट कहा है । मंगल लाल रंग का समस्त प्राणियों को अशान्ति देने वाला और रथतपात करने वाला समझा जाता था। केवल गुरु ही शुभ और समस्त प्राणियों को सुखशान्ति देने वाला बताया गया है । ग्रहों ना गम नक्षत्रों के साथ योग होता प्राणियों के लिए कल्याणदायक माना गया है। उद्योग पर्व के 14वें अध्याय के अन्त में ग्रह और नक्षत्रों के अशुभ योगों का विस्तार रो वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण ने जव वार्ण से भेंट की, तब कणं दे इस प्रकार ग्रह-स्थिति का वर्णन किया--- "शनैश्च र रोहिणी नक्षत्र में मंगल को पीड़ा दे रहा है । ज्येष्ठा नक्षत्र में मंगल वक्री होकर अनुराधा नामक नक्षत्र से योग कर रहा है। महापात संज्ञक ग्रह चित्रा नक्षत्र को पीड़ा दे रहा है । चन्द्रमा के चिह्न विपरीत दिखाई पड़ते हैं और राह सूर्य को ग्रसित करना चाहता है।" शल्यत्रध के समय प्रात:काल का वर्णन इस प्रकार किया गया है--Page Navigation
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