Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_2
Author(s): Manekyashekharsuri
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat
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कति जा तस्स धम्मस्सत्ति पदं, तओ उद्घट्टिया अन्भुदिओमि (आराहणाए इच्चाइयं जाव वन्दामि ) जिणे चउवीसंति भणित्ता गुरू निविसन्ति । तओ साहू वंदित्ता भणन्ति ' इच्छामि खमासमणो उवडिओमि अम्भितरपक्खियं खामेउं' गुरू भणइ 'अहमवि खामेमि तुम्मेत्ति' ताहे साहू भणंति ‘पन्नरसण्हं दिव.' एवं जहण्णेण तिन्नि वा पंच वा, चउमासिए संवच्छरिएK सत्त, उक्कोसेणं तिसु ठाणेसु सवेवि खामिन्जन्ति । एवं तु संबुद्धाखामणं रायणियस्स भणियं । संबुद्धो वृद्धस्तस्य स्वयमेव लघुः क्षमयतीत्यर्थः । तओ कयकिइकम्मा उद्भट्ठिया पत्तेयखामणं करेंति । तत्थ गुरू अन्नो वा जेट्ठो पढमं उट्ठेऊण कणिटुं भणइ 'अमुगनामधेया अभितरपक्खियं खामेमो पन्चरसहं दिव० । इमोवि भूनिहियजाणुसिरो कयंजली भणइ 'भगवं अहमवि खामेमि तुम्भे पनरसण्हं'। किं गुरू उद्वित्ता खामेइ ? उच्यते सव्वजइजा. णावणत्थं जहा एस महप्पा मुत्तुमहंकारं जहा दवओ अब्भुदिओ खामेइ, एवं भावओवि समुडिओ खामेइ। किं च जे गुरुसमीवाओ उत्तमतमा जच्चाइएहिं मा ते चिंतिजा एस नीयतरो अम्हे उत्तमतमत्ति काउं नयसिरो खामेइत्ति, एवं सेसावि । ताहे सवे कयकिइकम्मा भणन्ति देवसियं आलोएउं पडिक्वंता पक्खियं पडिकमामो ? गुरू भणइ-सम्मं पडिक्कमहत्ति ।
अथ पाक्षिकसूत्रं 'तित्थंकरे ।
तित्थंकरे अ तित्थे, अत्तित्थसिद्धे अ तित्थसिद्धे य। सिद्धे जिणे रिसी, महरिसी य नाणं च | a दामि ॥ १ ॥ जे अ इमं गुणरयणसायरमविराहिऊण तिण्णसंसारा । ते मंगलं करित्ता, अहमवि
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