Book Title: Aupapatikopanga Sutram
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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॥ अहंम् ॥
पू. आ. श्रीविजयरामचन्द्रसूरिभ्यो नमः ।
श्रीमच्चतुर्दश पूर्वधरश्रुतस्थविरसंकलितं श्रीमदभयदेवसूरिसंहन्धविवरणयुतं
औपपातिकसूत्रम् ।
॥ ऐ ॥ श्रीवर्द्धमानमानम्य, प्रायोऽन्यग्रन्थवीक्षिता । औपपातिकशास्त्रस्य, व्याख्या काचिद्विधीयते ॥ १ ॥
थोपपातिकमिति कः शब्दार्थः ९, उच्यते उपपतनमुपपातो - देवनारकजन्म सिद्धिगमनं च, अतस्तमधिकृत्य कृतमध्ययनमौपपातिकम् । इदं चोपाङ्ग' वर्त्तते, श्राचाराङ्गस्य हि प्रथममध्ययनं शास्त्रपरिज्ञा, तस्याद्योद्देशके सूत्रमिदम् - "एव *मेगेसिं नो नायं भवइ-अस्थि वा मे आया seatre, नत्वा मे आया उवधाइए, के वा अहं आसी ? के वा इह (अहं) च्चुए (इओ चुओ) पेचा इह भविस्सामी" त्यादि, इह च सूत्रे यदपपातिकत्वमात्मनो निर्दिष्टं तदिह प्रपञ्च्यत इत्यर्थतोऽङ्गस्य समीपभावेनेदमुपाङ्गम् । अस्य चोपोद्घातग्रन्थोऽयम् -
ते णं काले णं ते णं समए णं चंपा नाम नयरी होत्था, १ । रिडत्थिमियसमिडा (१) पमुहय-जणजाण (जणुजाण - जण ) * श्राचाराङ्गवृत्तिकाराभिप्रायेण 'एवेत्यादिर्भवइ' पर्यन्तः पाठो द्वितीयसूत्रोपसंहारवाक्यरूपः ।
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