Book Title: Atmanand Prakash Pustak 013 Ank 11 Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ. o n . . . लगते समय सिद्धि वर्या, जे कारणे छेहले समय तो १३ प्रकृति उदयमां तथा सत्तामा छे, अने जे समये उदय सत्तागत कर्म होय तेहज समइं सिद्धि, इंम कहेवाय ज किम ? काय समयना में भाग थता नथी। तथा जे कर्मनो उदय तेहज कर्मनो क्षयएक समये किम होय ? तथा कोई कहेस्थे जे ए तो व्यवहार व्याख्या छे, निश्चय थकी चौदमा गुणठाणाने छेहले समय सिद्धि ते पगि कहें, न घटें । जे कारण माटे आउषा कर्मनी परिशाट कह्यो छइं. जे आयुकर्म सर्वथा जीवथी भिन्न कि वारई थयु, तिवारें विशेपावश्यकमां कडं जे निश्चयनयें " परभव पढमे साडो" इति एतले परभवने प्रथम समये सर्व शात कह्यो, जिवारे छंहले समयें तो न कह्यो । वली श्री विशेषावश्यक मध्ये केवलज्ञान उपजावा आश्री निश्चय-व्यवहारनय फलाव्या छे, तेहमां इंम ठराव्युं जे, निश्चय थकी केवलज्ञान तेरमा गुणठाणाने प्रथम समयें उपर्नु, अने व्यवहार नये तेरमाने वीजें समयें उपर्नु, जे माटें व्यवहार नय ते उपना पछी उपयूँ कहें छे; क्रियाकाल-निष्ठाकाल भिन्न समयें माने. अर्ने निश्चयनय उपजतां वेला उपर्नु कहें छे जे माटें निश्चयनय क्रियाकाल-निष्ठाकाल एक मानें छे । इति । ए रीतें विशेषावश्यकमां चर्चा करी छे, पणि बारमा गुणठाणाने चरम समय केवलज्ञान एहचुं तो कहिइं लिख्युं नथी । जो ते बारमानें छेहले समय केवलज्ञान उपर्नु लिख्युं होत तो चौदमाने छेहले समय सिद्धि इंभ कहेंवात ते तो नथी । ते माटें लगते समय सिद्धि इति । वली मूगडांग मूत्रमा केवली भगवान, इरियावही संबंधी शाता वेदनीनो बंध ह्यो छ तिहां एहवा पाठ छे । "जे पहमें बंधइ, बीए घेण्ड, तइर निजरे। " प्रथम हामण वांधे, बीजे समये बेदें, त्रीजें समय निजरें एहमा पनि वेदवाने समय निर्जरा नथी कही तिवारें इंम ठयु जे वेदवाने लगते समई निर्जरा, ए रीतें चौदमाने छेहले समय १२ प्रकृतिनुं वेदवु अने तेहनें लगते समय निर्जश, अमें निर्जरा तथा सिद्धिनो समय ते एक, जे सम निर्जरा तेह समय सिद्धि ए रिति छ । बळी कोइ कहेस्ये जे एक समयमा उत्पाद-व्यय किम थाय ? लेहने कहिइं, जे सिद्धिनें समय सकर्मा पयायनो व्यय सिद्ध पर्यायनो उत्पाद ए पणि नगद छेकांय एक समयमा जे पर्यायनो व्यम ते पर्यायनी उत्पत्ति इंभ तो होयज नहीं । वली श्री भगवतीसूत्रमें धुरे "चलमाणे चलिए" इत्यादिक ९ प्रश्नमां पणि" उदीरिज भाणे उदी For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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