Book Title: Atmanand Prakash Pustak 013 Ank 11
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ विचार सकते है । महाशयो ! जो उपकारी होते है वह स्वयं शान्त मुर्ति हो कर अन्यकी अशान्तिको हटा देते हैं, वह उद्वेग रहित होते हैं, वही इस संसारमे कुछ कर सकते हैं, नकि जो तापसे पथ्थरके भांति जरासामे, गरम जरा सामे, ठण्डा हो जाता है, यानि जिस काम न जरासा सुख या दुःखसे विचलित हो जाता है, वह नतो अपना सुधार कर सकता है न अन्यका! आप एसे नही थे, कैसाही विघ्न कैसाही दुःख, कैसाही समय, कैसाही भारी कार्य, क्यो न आ. पडे, उस समय जिसका मन हिमाचलकी भांति निश्चल रहता है, वही उपकारचक्रको चला सकते है, वही संसारके वीरोंमें गिने जाते हैं, वही संसारमे कुछ कर सकते हैं, उसीके नामकी जपमाला सच्चे और साफदिलसे लोक फिराते हैं, उन्हीको सारा समान पूज्यदृष्टि से देखता है, उन्हीका नाम इतिहासोमे अजरामर होता है, बोहि लोगोपर कुछ सच्चा उपकार करते हैं, आपभी एक एसेही महर्पिथे सभ्यश्रोतवृन्दो ? विपदाको सहन करता हुआभी उपकारी पुरुष परोपकारसे चित्तवृत्ति नही खेचता, जैसे किसी कविने कहा हैं । उपकृति साहसिक तया क्षतिमपि गणयातनोपकारी प्रकाशयति प्रकाशं दीपशिखा स्वांगदाहे न ॥१॥ आपद्धतः खलु महाशय चक्रवतिः विस्तारयत्यकृत पूर्व मुदारभावं। कालागुरु दहन मध्य गतस्समन्तात् लोकोत्तरं परिमलं प्रकटी करोति ॥२॥ जडसे उखाडके सुखाय डाले मोहि मेरे प्राग घोंटडालें धर धुंआके मकानमे. मेरी गांड काटे मोहि चाकुसे तरासडारे अंतरसे चीरडारे घरे नहीं ध्यानमें स्याही मांहि वोर बोर करे मुख कारो मेरो करोंगे उजारो तौहुं ज्ञानके जॉहानमे परेहुं पराये हाथ तजौ न परोपकार चाहे घिस जाउँ यो कलम कहे कानमें ॥५॥ इससे आप समझसके होंगे कि उपकारीका कैसे कष्ट का सामना करना पडता है, आपको कितनी कष्ट सहन करना पड़ा इसका निर्णय जिस समय आपने ढुंढक मतको जैनदर्शनसे विपरीत समझ कर उस छोडकी मनमें ठान लीधी उस समय आपके मनमे एसा विचार उत्पन्न हुआथा कि मैं सच्चे रास्तेका राही बनुगा नीतिके पथको न छोडुगा पैसे नीति कारने कहा है " निन्दन्तु नीति निपुणा यदि वास्वतन्तु, लक्ष्मी समादिशतु गच्छतु वा यथेष्टं, यथैवा मर For Private And Personal Use Only

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