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की भांति सम्मिलित हो जाऊं। विराट की योजना ही मेरी योजना हो और विराट का संकल्प ही मेरा संकल्प। और जहां जाता हो यह अनंत, वहीं मैं भी चल पडूं; उससे अन्यथा मेरी कोई मंजिल नहीं। डुबाये तो डूबू, उबारे तो उबरूं। डुबाये तो डूबना ही मंजिल; और जहां डुबा दे वहीं किनारा।
और कहते हैं, लाओत्सु उसी क्षण परम ज्ञान को उपलब्ध हो गया।
यह सूत्र, पहला सूत्र अष्टावक्र का निर्वासनो। हिंदी में अनुवाद किया गयाः वासनामुक्त। उतना ठीक नहीं। निर्वासना का अर्थ होता है, वासनाशून्य; वासनामुक्त नहीं। क्योंकि मुक्त में तो फिर भाव आ गया कि जैसे कुछ चेष्टा हुई है। मुक्त में तो भाव आ गया, जैसे कुछ संयम साधा है। मुक्त में तो भाव आ गया अनुशासन का, योग का, विधि-विधान का। मुक्त का तो अर्थ हुआ, जैसे कि बंधन थे और उनको तोड़ा है। जैसे कि कारागृह वास्तविक था और हम बाहर निकले हैं।
नहीं, वासनाशून्य-निर्वासनो। वासना-रहित; मुक्त नहीं, वासनाशून्य। जिसने वासना को गौर से देखा और पाया कि वासना है ही नहीं। ऐसे वासना के अभाव को जिसने अनुभव कर लिया है। फर्क को समझ लेना। फर्क बारीक है।
यहीं योग और सांख्य का भेद है। यहीं साधक और सिद्ध का भेद है। साधक कहता है, साधूंगा, चेष्टा करूंगा; बंधन है, गिराऊंगा, कागा, लडूंगा। उपाय से होगा। विधि-विधान, यम-नियम, ध्यान-धारणा–विस्तार है प्रक्रिया का; उससे तोड़ दूंगा बंधन को।
सिद्ध की घोषणा है कि बंधन है नहीं। उपाय की जरूरत नहीं है। आंख खोलकर देखना भर पर्याप्त है। जो नहीं है उसे काटोगे कैसे?
तो दुनिया में दो तरह के लोग हैं : एक, संसार में बंधन है ऐसा मानकर तड़फ रहे हैं। एक, संसार का बंधन तोड़ना है ऐसा मानकर लड़ रहे हैं। और बंधन नहीं है। ऐसा समझो कि रात के अंधेरे में राह पर पड़ी रस्सी को सांप समझ लिया है। एक है, जो भाग रहा है; पसीना-पसीना है। छाती धड़क रही है, घबड़ा रहा है कि सांप है। भागो! बचो! और दूसरा कहता है, घबड़ाओ मत। लकड़ियां लाओ, मारो। एक भाग रहा है, एक सांप को मार रहा है। दोनों ही भ्रांति में हैं। क्योंकि सांप है नहीं; सिर्फ दीया जलाने की बात है। न भागना है, न मारना है। रोशनी में दिख जाये कि रस्सी पड़ी है तो तुम हंसोगे। ___ अष्टावक्र की सारी चेष्टा तीसरी है : रोशनी। आंख खोलकर देख लो। थोड़े शांत बैठकर देख लो। थोड़े निश्चल-मन होकर देख लो। कहीं कुछ बंधन नहीं है। वासना है नहीं, प्रतीत होती है। फिर प्रतीति को अगर सच मान लिया तो दो उपाय हैं : संसारी हो जाओ या योगी हो जाओ: भोगी हो जाओ या योगी हो जाओ। भोगी हो गये तो भागो सांप को मानकर; तड़फो। योगी हो गये तो लड़ो। ___अष्टावक्र कहते हैं, इन दोनों के बीच में एक तीसरा ही मार्ग है, एक अनूठा ही मार्ग है-न भोग का, न त्याग का; देखने का, द्रष्टा का, साक्षी का। जागो!
इसलिए मैं निर्वासना का अनुवाद वासनामुक्त न करूंगा। निर्वासना में जो व्यक्ति है वह वासनामुक्त है यह सच है, लेकिन अनुवाद 'वासनामुक्त' करना ठीक नहीं। क्योंकि वह भाषा योगी की है-वासनामुक्त। वासनाशून्य, वासनारिक्त, निर्वासना—जिसने जान लिया कि वासना नहीं है। जागकर देखा और पाया कि कारागृह नहीं है; नहीं था, नहीं हो सकता है। जैसे रात सपना देखा था—पड़े थे कारागृह में, हथकड़ियां पड़ी थीं, और सुबह आंख खुली। जाना कि झूठ था सब। जाना
अष्टावक्र: महागीता भाग-5