Book Title: Aparokshanubhuti Satik
Author(s):
Publisher: Jain Bhaskar Mudranalay
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अन्न महमिति अत्रयतइत्यध्याहारस्तथाचायमर्थःगयतोहमहंप्रत्ययवेयोप्येकःसजातीयादिभेदशून्योमनुष्यमा ६ष्यहंबढेरेकप्रतीतेरियर्थः।चपनःसूक्ष्मइंद्रियागोचरतापन ताऽहंकारादिप्रकाशकलेनचेतनइत्य
र्थातथासाक्षीसाक्षादिद्रियार्थसनिकर्षविनवेक्षतेपश्यतिप्रकाशयतीतिसाक्षीनिर्विकारइत्यर्थः। अना एसव्ययःसंश्वासावध्ययश्चविनाशापक्षयोपलसित्सर्वविकारशून्यस्त्यर्थःयस्मादेवभूतोहंतत्तस्मादा हमहप्रत्ययवेद्यस्तत्सत्यज्ञानादिलक्षणंब्रह्माअत्रसंदेहोनास्तीत्यर्थः।। सायमीहशोविचार इति॥दाएतरे अहमेकोपिसूक्ष्मश्वज्ञातासासासदत्ययःतिदहनानसंदेहो विचारसोयमीरशः॥१६॥
स्माविनिकलो कोदेहोबहुभिरारतः॥ वजीवनोकामज्ञानप्रदर्शनेनटयति॥आत्मेन्यादिपंच [भिः॥यतोहंप्रत्ययवेयात्माअततिसूतभावेनजायदादिसावस्थास्वनवर्ततत्त्यात्माअवस्थात्रयभावाभा वसाक्षिलेनसत्यज्ञानादिखरूपयर्थः। सर्वपदलत्यापितसदलपायखविनिकलोविशेषेणनिर्गत कलानिरवयवस्यर्थः अन्यथासोक्यवखेपटादिवहिनाशिवापत्तिरितिभावः।मत्रतःएक होतिएकमे रामः बाहिनीपमित्यादिवसिद्धियोतपतिाननतथालिंगदेहोप्यतीतिचेनदेहीलिंगदेहःसरमशरीरमितियावत
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