Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-५९
तिय दंसणि वण-कुमुय जिम उल्लसिय मुणिविंद । नंद नंद आणंदमय चंदाणण जिणचंद ।।१५।। निच्छइ हिव नहु संभवए भूरि भमणु संसारि । चंदबाहु जउ भमर जिम ठिउ मण-कमल मझारि ॥१६।। काम-भुयंगम बल-दलणु नाममंतु मण रंगि ।
जे समरइं सिरि भुयग जिण रोग नहीं तिह अंगि ॥१७|| रयणि दिवसु किम वीसरइं ईसर जिण तुह पाय । सासय-सुक्खहं कारणिहिं जह सेवइं सुरराय ॥१८॥ कवण सु होसिइ मुज्झ दिणु नेमिप्पह नयणेहिं । जिणि जोइ सु रोमंचियउ थुणिसु महुर-वयणेहि ॥१९।। विस्ससेण जिण विसय-विस लहरिउ अम्ह सरीरो । निय संगम पीयूष-रसि-छंटिय करि वयधीरो ॥२०॥ कलि कलमल-नासण सलिल महिमालउ गमह भद्द । निय सेवय महु देहि पहो सिव मंगल महभद्द ॥२१॥ सुर नर तिरि संसय विसर देसण सद्विहरंतो । समवसरण भूसणु जयउ देवेसरु अरुहंतो ॥२२॥ तह मंदिर अंगणि रमइं सिद्धि बुद्धि जस रिद्धि । जे तिसंउ झायंति मणि तित्थेसरु जस रिद्धि ।।२३।। देह माणि धणु पंचसय सवि जिण कंचण-वन्न । चउतीसइ अइसय सहिय वसहंकिय सिरि-पुन्न ॥२४॥ सुरतरु सुंदरु इय थुणिय विहरमाण जिण सार । वसउ मेरुनंदणिहिं जिम महु मणि सुह फलकार ॥२५॥
॥ इति श्री वीसविहरमाण स्तवनं ॥

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