Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
जून - २०१२
RU
जंबुदीवि चत्तारि जिण धायईसंडिहिं अट्ठ । पुक्खरद्धि तह अट्ठ इम वीस नमउं गय-कट्ठ ॥२॥ सामिय करुणारसभरिय सीमंधर जिणराय । नियदंसणु दइ अमिय-समु पूरि मणोरह ताय ॥३॥ जाणउं ते सुकयत्थ जण जे तुह वयण सुणंति । धन्न ति जे तुह करि चरणु पामिय कम्म हणंति ॥४॥ पावपंक जगउद्धरण सधर जुगंधर सामि । भव सायर उत्तारि मम लीणउ छउं तुह नामि ॥५॥ मयणानलि संतावियउ वंछउं तुह पय छांह । नंदणवण सम बाहुजिण दइ अवलंबण बांह ॥६॥ जीव जोनि चउगइ भमिउ जिण चउरासी लक्ख । सिरि सुबाह हिव तुह सरणि आविउ दय करि रक्ख ॥७॥ गुण संकुल कमला निलय निम्मल सामि सजाय । करउ केलि महु हियइसरि कमलोवम तुह पाय ॥८॥ सामि सयंपह सो जयउ जसु पसाइ मयकुंभो ।। मोह महाभडु भंजि करि ऊभिज्जइ जस खंभो ॥९॥ गुण-काणण सिंचण सुघण रिसहाणण पय-रंगो । किम पामिय हुं रंजवियो निय मणे स सारंगो ॥१०॥ जे नमंति मनि खंति धरिऽणंतवीरिय पय कंत । भोगवंति ते भविय जण सिव सुह-रिद्धि अणंत ॥११॥ पहु सूरप्पहु संघवणि नाण-किरण गण चूरि । पुन्नपयोहर उल्लसिय पाव तिमिर गय दूरि ॥१२॥ ते अजरामर हंति जिण सिरि तित्थयर विसाल । सवणंजलि जेति तु पीयइं वाणिय अमिय-रसाल ॥१३॥ नाण महीधर वज्जवर पुद्धर वयरधर धीर । रक्खि रक्खि जिण वज्जधर रयणायर गंभीर ॥१४॥

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 161