Book Title: Anusandhan 2010 09 SrNo 52
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ 7 कोण करशे ? अमे घणुंबधुं कर्तुं जरूर, पण अमे विद्वानोनी नवी पेढी तैयार न करी शक्या !” आ सन्दर्भमां में आपेल उपरोक्त जवाब सांभळीने तेओ खूब हरखायेला के जो आवुं थतुं होय तो तो घणुं ज सरस, घणुं उत्तम ! आनो अर्थ एवो नथी के गईकालना साधुओ विद्वान नहोता. खरेखर तो तेमनी विद्वत्ता अने सर्वशास्त्रज्ञता अजोड हती. फक्त आधुनिक पद्धतिना संशोधननी फावट तेओ पासे नहोती. कदाच ते तेमना मानसने रुचिकर पण नहि होय. परन्तु शास्त्रग्रन्थोना सम्पादन - प्रकाशननो पायो तो तेमणे ज नाखी आप्यो छे, ते निर्विवाद सत्य छे. आजे परिस्थिति जरा जुदी छे. आजनो साधु विद्वत्ता तो धरावे ज छे, साथे साथे तेने पाठशोधनना अने संशोधनना लाभो समजावा मांड्या छे. तेथी तेनुं अध्ययन अने सम्पादन - ए बन्ने वैज्ञानिक कही शकाय ते प्रकारनी शोधवृत्तिथी ओपतां थवा लाग्यां छे; अथवा तेम थवाना अणसार मळी रह्या छे. अत्यार सुधी श्रीपुण्यविजयजी, श्री जम्बूविजयजी जेवां एक बे नामो ज आ क्षेत्रे लेवातां रह्यां छे. परन्तु हवे चित्र बदलायुं छे. आजे घणाबधा जैन मुनिओ तेमज साध्वीओ संशोधनात्मक सम्पादन - प्रकाशननुं काम करतां थयां छे; हस्तप्रतोनी लिपि तेमज अभिलेखोनी लिपि उकेलवा लाग्या छे; लिप्यन्तरनुं काम बहुज सहजताथी करे छे; इतर संशोधन - अध्ययनोमां पण रुचि धरावता थया छे. पूर्वग्रहोथी तद्दन मुक्त न थवातुं होय तो पण परम्पराने वळगी रहीने पण प्रमाणभूत संशोधनो - अध्ययनो करी शकाय छे, तेवुं समजता पण थया छे. अने आ बधी बाबतो ऊजळी आवतीकालनी निशानीरूप छे. NMM तथा तेवी अन्य संस्थाओ साथै संकळायेला तेमज अन्य स्कोलरो के अधिकृत जनो आ बाबतथी पूर्णतया अज्ञात छे; अथवा जे कोई आ बाबत विषे थोडुं घणुं पण जाणे छे तेओ आनी उपेक्षा सेवे छे. अलबत्त, आमां गुमाववानुं होय तो पण ते ते लोकोना पक्षे छे; साधुओना पक्षे नहि. आ सन्दर्भमां विचारीए तो एम कही शकाय के आपणी, संशोधनविद्यानी अने शोधक दृष्टिकोणथी करवाना विद्याध्ययननी आवतीकाल नि:शंक आशास्पद अने उज्ज्वल बनी रहेवानी छे. - शी. *

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 146