Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 131
________________ १०, पर्व २३, किरण अनेका "भाईवर ! तुम अपने पापको ही प्रभु मान रहे हो? गये। भोगी से योगी बन गए। यह देख भरत की प्रांखें क्या मैं तुम्हारी इस प्रकार की बातो से डर जाऊँगा? डबडबा पाई। उन्होंने प्रेम प्रवण बचनों से मनीन्द्र बाहु . क्या मैं इस लोहे के कड़े चक्र से भयभीत हो जाऊँगा?" बली की बंदना की। भरत से रहा न गया उन्होंने दीप्ति से जाज्ज्वल्यमान बाहुबली कायोत्सर्ग में लवलीन थे। शरीर उनका चक्र को जोर से फेंका। वह चक्र बाहुबली के पास प्राकर मोक्ष का हेतु बन गया था। एक नही बारह महीने बीत चक्रवर्ती भरत को मोर मुड-बढ गया। बाहुबली का रोष गए । प्रभीष्ट की प्राप्ति नहीं हुई। उनके मन में अहं का बढ़ा और वे मुष्टिप्रहार से भरत को मारने दौड़े। तभी प्रकुर जो विद्यमान था। विभु ऋषभदेव ने यह जाना। माकाशवाणो हई--"हे बाहुबलि ! व्यर्थ अपने बल को उन्होने अपनी प्रव्रजित दुहितापों ब्राह्मी और सुन्दरी को युद्ध में नष्ट-विनष्ट कर रहे हो ? यह भवितव्य हेतु शुभ- शका निवारणार्थ भेजा। उन्होने अपने बन्धु को प्रतिबोष कर नही । तुम्हे अपने क्रोध का सहरण करना पड़ेगा। दिया -"मनोन्द्र ! गज से उतरिए ।" बस फिर क्या था भरत द्वारा प्राचीणं चरित्र को विस्मरण करना होगा। प्रतिबद्ध बाहुबली ने अहं के अंकुर को समूल उखाड़ फेंका। तुम्हे प्रात्म कल्याणार्थ अग्रसर होना है। मुनिपद की विनय के प्रवाह मे वे निमग्न हो गये। प्रबुद्ध हो गए। साधना करना है।" निरावरण ज्ञान की उपलब्धि हो गई। बाहुबली सर्वज्ञ. माकाशवाणी सुन बाहुबली का रोष-प्राक्रोश शमित- सर्वदर्शी बन गए। शांत हमा । बाहुबली ने अपने बल का प्रयोग हाथ से सिर पोली कोठी, प्रागरा रोड, के केश लुचन में किया पौर वे महाव्रतधारी मुनि बन अलीगढ़-२०२००१ १० ४ का शेषांश) सम्मयता ने ५७ फुट उन्नत कामदेव सरीखी मानव प्राकृति कल्कि संवत ६०० मे विभव संवतसर चैत्र शुक्ला ५ को सन्तुलित रूप में सर्जन कर दुनियाँ को पाठवा पाश्चर्य वार रविकुभ लग्न, सौ-मोयय्य योग, मृगाशिरा नक्षत्र में भेंट कर दिया। ५७ फूट उन्नत नग्न खडी बिना प्रावार प्रतिमा की प्रतिष्ठा और प्रयम मस्तकाभिषेक हुमा था । की यह प्रतिमा पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर माज एक वर्तमान विद्वानों की गणनानुमार उस दिन २३ मार्च हजार वर्षों से खडी भारतीय और विदेशी भक्तो का तीर्थ १०२८ ई. सन था। धाम बनी हुई है। यह घाम पाज अन्तर्राष्ट्रीय तीर्थस्थल है। पोदनपुर के महाराजा बाहुबली को सुन्दरता के प्रतिमा के मस्तकाभिषेक की परम्परा प्रतिमा के कारण गोम्मट कहा जाता था, प्रतएव गोम्मट को प्रतिमा स्थापना दिवस से (कुभ के सदृश्य) १२ वर्षोंमे को है। परन्तु गोम्मटेश्वर के नाम से विश्व में प्रख्यात हुई, पोर वह इस विधान मे अक्सर व्यवधान उपस्थित होता रहा है। अपनी बहुमुखी प्रतिभा, शिल्प की मद्भतता विना माघार २०वीं शती का मस्तकाभिषेक का क्रम इम प्रकार रहा है, की ५७ फुट ऊँची प्रतिमा सभी ऋतुषों के विविध १९०६, १९२५, १९४०, १९५२ पौर १९६७ । पब झझावातों का वरण करते हए जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों मे २२ फनवरी १६८१ को हो रहा है। प्रत्यक्ष प्रतीक रूप में अनुभव करा कर जन-जन का सन १९५२ ई० के मस्तकाभिषेक के अवसर पर कल्याण कर रही है। मैसर नरेश बीमन्त महाराजा कृष्णराज ने कहा था-- माज हम सहस्राब्दी महा महोत्सव की पवित्र देला "जिस प्रकार भगवान बाहुबली के अग्रज चक्रवर्ती भरत के में भगवान बाहबली गोम्मटेश्वर के चरणों में अपनी साम्राज्य के रूप में इस देश का नाम भरत वर्ष (बाद में भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पण करते हुए प्रधा नहीं भारतवर्ष) कहलाया, उसी प्रकार यह मैसूर राज्य की रहे हैं। भमि भी भगवान गोम्मटेश्वर के माध्यात्मिक-साम्राज्य की बनारसी माल के व्यापार, वसन्ती कटरा, प्रतीक है। ठठेरी बाजार, वाराणसी-२२१००१

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