Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 201
________________ ७४, वर्ष ३३, किरण भनेकान्त उल्लेख मिलते है। पालि-ग्रन्थ "महावंश" के अनुसार की परम्परा के प्रवर्तक जिन चौबीस तीथंकरों का लंका में ईस्वीपूर्व चौथी शताब्दी में गिग्रन्थ साधु विद्यमान वर्णन मिलता है, उससे निश्चित है कि सभी तीर्थकर थे। सिंहल नरेश पाण्डकामयने मनुरुद्धपुर में जैन मन्दिर क्षत्रिय थे। केवल तीर्थकर ही नही, समस्त शलाकापुरुष का निर्माण कराया था। तीर्थकर महावीर के सम्बन्ध में क्षत्रिय कहे जाते है। प्रत्येक कल काल मे तिरेसठ शलाका कहा गया है कि उन्होंने धर्म-प्रचार करते हुए वकार्थक, के पुरुष होते है। इसी प्रकार जैनधर्म के प्रतिपालक अनेक वाह्रोक, यवन, गन्धार, क्वाथतोय, समुद्रवर्ती दशो एव चक्रवर्ती महाराजा हुए। जहाँ बड़े-बडे चक्रवर्ती राजानों उत्तर दिशा के ताण, कार्ण एव प्रच्छाल प्रादि देशों मे ने इस देश की अखण्डता को स्थापित कर शान्ति की विहार किया था। यह एक इतिहासप्रसिद्ध घटना मानी दुन्दुभि बजाई थी, वही महाराजा बिम्बसार (श्रेणिक), जाती है कि सिकन्दर महान् के साथ दिगम्बर मुनि सम्राट चन्द्रगुप्त, मगधनरेश सम्प्रति, कलिंगनरेश खारबेल, कल्याण एवं एक अन्य दिगम्बर सन्त ने यूनान के लिए महाराजा अाषाढ़सेन, प्रविनीत गग, विनीत गंग, गंगनरेश विहार किया था। यूनानी लेखकों के कथन से बेक्ट्रिया ___ मारसिंह, वीरमार्तण्ड चामण्डराय, महारानी कुन्दब्बे, पौर इथोपिया देशों में श्रमणो के विहार का पता चलता । सम्राट अमोघवर्ष प्रथम, कोलुत्तुंग, चोल, साहसतुग, है। मिश्र मे दिगम्बर मूर्तियों का निर्माण हुमा था। वहां लोक्यमल्ल, पाहवमल्ल, बोपदेव, कदम्ब, सेनापति गग राज, महारानी भीमादेवी, दण्डनायक बोप्प पोर राजा की कुमारी सेन्टमरी प्रायिका के भेष में रहती थी। भगु सुहेल आदि ने भी इस धर्म का प्रचार व प्रसार किया है। कच्छ के श्रमणाचार्य ने एथेन्स मे पहुंच कर अहिंसा घम पांचवी-छठी शताब्दी के अनेक कदबवंशी राजा जैनधर्म का प्रचार किया था। हुएनसांग के वर्णन से स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि सातवी शताब्दी तक दिगम्बर मुनि के अनुयायी थे। राष्ट्रकूट-काल में राज्याश्रय के कारण अफगानिस्तान में जैनधर्म का प्रचार करते रहे है। जा० इस धर्म का व्यापक प्रचार व प्रसार था। भनेक ब्राह्मण एफ० मूर का कथन है कि ईसा की जन्म शती के पूर्व विद्वान् जनदर्शन की विशेषतानो से प्राकृष्ट होकर जैनईराक, शाम भोर फिलिस्तीन म जैन मुनि और बाद्ध धर्मावलम्बी हए। मूलसघ के अनुयायी ब्रह्म सेन बहुत बड़े भिक्ष सैकड़ो की सख्या में चारो ओर फैलकर अहिंसा का विद्वान तथा तपस्वी थे। 'सन्मतिसूत्र' तथा 'द्वात्रिशिकामो' प्रचार करते थे। पश्चिमी एशिया, मिश्र, यूनान मोर के रचयिता सिद्धसेन ब्राह्मण कूल मे उत्पन्न हुए थे जो इथोपिया के पहाड़ों व जंगलो म उन दिनो मगणित उन दिना भगाणत मागे चल कर प्रसिद्ध जैनाचार्य हए । वत्सगोत्री ब्रह्मशिव भारतीय साधु रहते थे। वे अपने प्राध्यात्मिक ज्ञान मोर त्मिक ज्ञान मार ने सम्पूर्ण भारतीय दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन कर के त्याग के लिए प्रसिद्ध थे जो वस्त्र तक नहीं पहनते थे। नहा पहनत थ । 'समय परीक्षा' ग्रन्थ की रचना की जो बारहवी शताब्दी मेजर जनरल जे. जी. मार० फलांग ने भी अपनी खोज की रचना है। भारद्वाज गोत्रीय प्राचण्ण 'वर्द्धमानपुराण' मे बताया है कि भोकसियन केस्पिया एव बल्ख तथा के रचयिता बारहवी शताब्दी के कवि थे। दसवी शताब्दी समरकन्द के नगरी में जैनधर्म के केन्द्र पाए गए है, जहाँ के अपभ्रश के प्रसिद्ध कवि धवलका जन्म भी विप्रकूल में से महिंसा धर्म का प्रचार एवं प्रसार होता था। वर्तमान हमा था। कुतीथं पोर कुधर्म से चित्त विरक्त होने पर म भी मुनि सुशीलकुमार तथा भट्टारक चारुकीति के उन्होने जैनधर्म का प्राश्रय लिया भोर 'हरिवंशपुराण' की समान सन्त इस जायित रखे हुए है। रचना की। दिगम्बर परम्परा के प्रसिद्ध प्राचार्य कर्नाटक. विगत तीन सहन वर्षों में जैनधर्म का जो प्रचार व हाय पज्यपाद का जन्म भी बाह्मणकल में इur प्रसार हमा, सम वंश्यों से भी अधिक ब्राह्मणो तथा प्रकार से अनेक विप्र साधको ने वस्तु-स्वरूप का ज्ञान कर क्षत्रियों का योगदान रहा है । भगवान महावीर के पट्टधर जैन साधना-पद्धति को अगीकार किया था। 000 शिष्यो में ग्यारहगणघर थे जो सभी ब्राह्मण थे। जैनधर्म शासकीय महाविद्यालय, नीमच (म०प्र०) १ प्राचार्य जिनसेन : हरिवशपुराण, ३, ३-७ इन्डियन प्रेस, प्रयाग, १९२६, पृ० ३७ २. डा० कामताप्रसाद जैन : दिगम्बरस्व और दिगम्बर ४. हुकमचन्द अभिनन्दन प्रन्य, पृ० ३७४ ___ मुनि, द्वितीय संस्करण, १० २४३ ५. साइन्स भाव कम्पेरेटिव रिलीजन्स, इन्ट्रोडक्शन,१९९७, ३. ठाकुरप्रसाद शर्मा : हुएनसांग का भारत भ्रमण, पृ०८

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258