Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 214
________________ तीर्थंकर महावीर की मान-मुनि-पावा' कोवाल की भाषस्ती, मगध की राजगृह, पोर मल्लों की वाली महलों की राजधानी 'पावा' कैसे हो सकती है? 'पावा' और 'कुशी नगर' थी। वैशाली वज्जियो की राजगही का राज्य साम्राज्यवादी' था, मोर अन्य मल्लराजधानी थी। यह एक प्रसिद्ध महत्वपूर्ण नगर था। मन्य राज्य स्वतन्त्र गणतन्त्र राज्य' थे । उनका इस भूभाग में सभी राजधानियों भी विस्तृत समृद्ध पौर युग की श्रेष्ठ होना असम्भव है। प्रसिद्ध नगरियां थी। श्वेताम्बर-सम्प्रदाय के जन-साहित्य से स्पष्ट मात गणतन्त्र के प्रमुख नगर 'पावा', कुशीनगर, भंडग्राम, माव ली भगवान ती. महावीर ने वालाहार, वनखण्ड, मोगनगर और पाम्र ग्राम थे। चातुर्मास 'पावा' के मल्ल गणतन्त्री राज्य हस्तीपाल की 'पावा' एवं कुशीनगर के मध्य तीन नदिया बहती थी, रज्जुग सभा में बिताया था। और उनका निर्वाण 'पावा' जिनमें तुकुत्था (घाधी) और हिरणावती के नाम पोर । - में हुअा था, जो मल्ल राजा हस्तीपाल की राजधानी पी। चिन्ह मिलते हैं। दिगम्बर प्राग्नाय के ग्रंथ पुष्पदन्तकृत महापुराण भगवान बुद्ध के यात्रा मार्ग की चर्चा बौद्धग्रस्थ (सन्धि १०२ कडवक १०-११) तथा उत्तरपुराण (७६, निव्वानसुत्त मे पाती है। वंशाली और कुशीनगर के बीच ५०८-५१२) में और अन्य ग्रंथों में भी केवली ती. भण्डग्राम, जम्बूग्राम, हत्त्तिग्राम , माम्रग्राम भोगनगर, भगवान महावीर ने अपने विहार का क्रम समाप्त कर 'पावा' और कुशीनगर उन्हें मिले थे। 'कुशीनगर' से 'पावा' नगर में अनेक सरोवरो के बीच उन्नत भूमि पर पावा कुल तीन गव्युति अर्थात् १२ मील दूरी पर था। महामणि शिला पर प्रासन ग्रहण लिया था और वही से गणराज्य की राजधानी 'पावा' का प्रसार साक्यराज वह मोक्ष पधारे थे । की सीमा तक फैला था। ती. महावीर के अनुयायियो डा० हीरालाल जी जैन और डा०मा० ने० उपाध्याये की बस्ती 'कुशीनारा' में थी। प्राचीन मल्लराष्ट्र के ही ।। प्राचान मल्ल राष्ट्र क भी अपनी रचना 'महावीर युग और जैन दर्शन' में भूभाग में अब भी मल्लों के राज्य (स्वाधीनता से पूर्व) पष्ठ ३० पर लिखते है कि -'कल्पमूत्र तथा परिशिष्ट पर्व विद्यमान हैं । किन्तु इन राज्यों के मल्ल शासक शायद के अनुसार जिस पावा में भगवान का निर्वाण हमा पा, अपने को उस पुरातन मल्लो का वशज न मान कर अन्य वह मल्ल क्षत्रियो की राजधानी थी। ये मल्ल बंशाली के क्षत्रिय मानते है। वज्जिसंघ व लिच्छवि संघ में प्रविष्ट थे। और मगध के महापंडित 'राहुल सांकृत्यादन' का कहना है कि सत्तात्मक-राज्य से उनका वैर था। मतएव गंगा के पडरौना के राज्य जो प्राजकल अपने को 'संथवार', दक्षिणवर्ती प्रदेश जहा वर्तमान पावापुरी' क्षेत्र है, वहां तमरवही के राजा "भूमिहार'-'ब्राह्मण' एवं मझोली के उनके राज्य होने की सम्भावना नही है। राज्य के विमने राजपूत' कहते हैं ये सभी 'मल्ल-क्षत्रियो' इसके अतिरिक्त बौद्ध ग्रंथो जैसे 'दीघ-निकाय, मंझिम. के वंशधर हैं। १३वी शताब्दी के प्रारम्भ मे 'कुशीनगर निकाय' मादि से भी सिद्ध होता है कि 'पावा' की स्थिति प्रोर पावा' के बौद्ध और जैन-विहार, स्तम्भ तथा मन्दिर शाक्य-प्रदेश' में ही थी, और वह वैशाली से पश्चिम की मुसलमानो द्वारा नष्ट कर दिये गये थे। पोर कुशीनगर से केवल दस बारह मील की दूरी पर थी। भरतसिंह उपाध्याय 'बुद्धकालीन भारतीय भूगोल' शाक्यप्रदेश के शाक्य-प्रदेश के 'सामग्राम' में जब भगवान बुद्ध का निवास मे लिखते हैं कि जैन-लोग महावीर की निर्वाण भमि था, तभी उनक था, तभी उनके पास सन्देश पहुंचा था कि अभी-२ अर्थात् 'पावा' को मानते हैं, जो विहार शरीफ से करीब ७ मील एक दिन के भीतर पावा में भगवान महावीर का निर्वाण 'दक्षिण पूर्व दिशा में नालन्दा के निकट स्थित है। 'पावा' हुमा है । तीर्थ यह स्थान कदापि नही हो सकता है, क्योंकि राजगृह उक्त बातों पर विचार विनमय , पश्चात् इतिहास के इतने निकट 'शाक्य' तथा 'कुशीनगर' और गणतन्त्रों इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि जिस पावापुरी में भगवान

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258