Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 235
________________ १०८, वर्ष ३३, कि अनेकान्त उपर्युक्त रचनामों के अतिरिक्त भो कई अन्य रचनाएं किया गया है। कवि न इस ग्रंथ का नाम 'काम चरिउ' 'भरत-बाहबली' चरित से संबंधित प्राप्त होती है। (कामदेव चरित) भी प्रकट किया है । इस ग्रंथ की भाषा वजसेनसूरि रचित 'भरतेश्वर-बाहुबलि घोर' पुरानी हिन्दी-भाषा के बहुत कुछ विकसित रूप को लिए हुये है। राजस्थानी की प्राचीनतम रचना है, जिसका प्रकाशन श्री रचना सरस, गभोर और रुचिकर प्रतीत होती है।' मगरचन्द नाहटा ने 'शोध-पत्रिका' में कराया था। यह उपर्युक्त रचनामो के अतिरिक्त कुछ ऐसी रचनाएँ भी वीर और शान्त रस का ४६ पदो को छोटा-सा काव्य है।' मिलती है, जो सीधे बाहुबली स्वामी के चरित्र से तो सं० १२४१ मे शालिभद्र सूरि ने भरतेश्वर-बाहुबली- सबध नही रखती, किन्तु प्रसगवश बाहुबली के चरित्र का रास' नामक खण्डकाव्य की रचना की, जिसको पुरानो भी पर्याप्त उल्लेख हमा है। ऐसी रचनामों में देवसेन कृत राजस्थानी का सबसे महत्वपूर्ण प्रथ कहा जा सकता है। 'महेसर चरिउ' तथा कवि रइघ का 'मेहेपर चरिउ मुख्य यह प्रादिकालीन हिन्दी-साहित्य का सर्व प्रथम रास माना है, जिनमे भरत चक्रवर्ती के सेनापति जयकुमार (मेघेश्वर) जा सकता है।' और उनकी धर्मपत्नी सुलोचना के चरित्र-चित्रण के साथमालदेव रचित'भरत बाहुबलि गीत' व 'खदक बाहुबली साथ प्रासंगिक हा मे भरत-बाहुबली-युद्ध, बाहुबलो का गीत" के अतिरिक्त 'भरत बाहुबली रास' नाम एक तपश्चरण पोर कैवल्य-प्राप्ति पादि का भी वर्णन किया अपभ्रश की अन्य रचना भी प्राप्त होती है।' सिद्धान्त गया है। इस प्रकार देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य को प्राकृत भाषा की रचना भरतेश्वर-बाहुबली-वृत्त प्राकृत, सस्कृत अपभ्रश, प्राचीन 'गोम्मटसार' भी बाहुबली-चरित्र से संबघित प्रतीत होता राजस्थानी, गुजरातो प्रादि मे निस्तृत रूप में मिलता है। है। सभवत. तेजबद्धन कृत 'भरत बाहुबनी रास' का सभव है, खोज करने पर अन्य ग्रन्थों में भी उनके उल्लेख भी मिलता है। चरित्रोल्लेख प्राप्त हो जाय । विद्वानो को अन्वेषण द्वारा स० १४५४ मे कवि धनपाल द्वारा रचित 'बाहुबली उनके पावन चरित्र से सबधित साहित्यका प्रकाश मे लाना चरिउ' मे पूर्णतया बाहुबली स्वामो के चरित्र का हो वर्णन चाहिए।' CO) महामस्तकाभिषेक श्री गोम्मटेश्वर के महामस्तकाभिषेक का श्रवणबेलगोल स्थित सन १५०० के शिलालेख नं० २३१ में जो वर्णन है उसमें अभिषेक कराने वाले प्राचार्य, शिल्पकार, बढ़ई और प्रग्य कर्मचारियों के पारिश्रमिक का ब्यौरा तथा ग्ब और बही का भी खर्वा लिखा है। सन् १६८ के शिलालेख न० २५४ (१०५) में लिखा है कि पण्डिताय ने गोम्मटेश्वरका ७बार मस्तकाभिषेक कराया था। पञ्चवाण कवि ने सन १६१२ में शान्ति वर्णी द्वारा करायेहए मस्तकाभिषेक का उल्लेख किया है व अनन्त कवि ने सन् १६७७ में मैसूर नरेश चिक्कदेवराज मोडेपर के मंत्री विशालाक्ष पंडित द्वारा कराये हुए और शान्तराज पडित ने सन् १८२५ के लगभग मैसर नरेश करणराज प्रोडेयर ततीय द्वारा करायेहए मस्तकाभिषेक का उल्लेख किया है। शिलालेख नं. २२३ (8) में सन १९२७ोने वाले मस्तकाभिषेक का उल्लेख है। सन १९०६ में भी मस्तकाभिषेकामा पा। मार्च सन १९२५ में भी मस्तकाभिषेकपा था, जिसे मैसूर नरेश महाराजा कृष्णराजबहादुर ने अपनी तरफ से कराया था। महाराजा ने अभिषेक के निर ५०००)60 प्रदान किये थे। उन्होंने स्वयं गोमास्वामी की प्राक्षिणाकी यो नमस्कार किया था तबाप से पूजन किया था। ताम्बर भी पशतमा महा समाभिकहोने मRIBERT. भिक्षेकर नरोकेग, रिवनका चरा घ.. बान, सारस, लालन, बाबा, बारक.. शकर, सबसपारस्पों से और जल से अभिषेक कराया जाता है। १.दे. शोष-पत्रिका, वर्ष ३, अंक ४। ५. दे. जैन प्रथ दशास्तिसंग्रह, भाग २ प्रस्तावना, २.दे० श्री गांपी द्वारा संपादित उक्त राम प्रय तथा पृ० ७८.८०। स.हरीश का 'रास-परम्परा पीर भरतेपर बाहवली ६.३० जन-प्रथ-प्रशस्ति-संग्रह, प्रस्तावना, पृ०६६-६७ । शीर्षक लेख। ३. दे० रनम्यानी भाषा और साहित्य डा. होरालाल ७. इस लेख के लिखने मे जिन विद्वान लेखकों के ग्रंथों माहेश्वरी, पृ. २६३ । तथा लेखों से सहायता ली गई है, उनके प्रति मैं ४.३० पाभ्रश सहस्पसकोछ, पृ. ३६३.६४ । हादिक मामार व्यक्त करता हूं।

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