Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 233
________________ १०६, बर्ष ३३, किरण अनेकान्त पा भी विश्व में ब्राह्मी लिपि प्राचीनतम मानी जाती है। ३. दोनों पहलवानों की तरह एक-दूसरे को पछारें। ऋषभदेव के शतपूत्रो मे भरत ज्येष्ठ थे। वही उनके जो चित्त हो जाये, वह हारा । इसे मल्लयुद्ध कहा गया। उत्तराधिकारी बने । प्रत: भरत को राज्य पद पर अभि- बाहुबली का शरीर मरत की अपेक्षा विशाल था। षिक्त कर ऋषभ स्वयं सन्यस्त हो तपश्चर्या में लीन हो वे उन्नतकाय भी थे। तीनों युद्धों में बाहुबली विजयी गए। ऋषभ ने भरत को हिमवत् नामक दक्षिण देश हुए। भरत अपनी इस हार से खीझ उठे। बदले को शासन के लिए दिया था। उसी के नाम से यह देश भावना से उन्होंने अपने भाई पर चक्र चलाया, किन्तु 'प्रजनाभवर्ष के स्थान पर 'भारतवर्ष' कहलाया' पौर देवोपुनीत प्रस्त्र परिजनों पर नहीं चलते। वह वाहवली प्राचीन मार्यो का भरतवश चला। भरत प्रथम चक्रवर्ती के चरणों में जा गिरा। वह उन्हें कोई हानि न पहुंचा थे। पोर उनके पीछे उनके पितामह तथा पिता शादि सका । इस प्रकार भरत की एक और पराजय हुई। तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतापी परम्परा थी। उन्होंने षट्- बाहुबली को विजयी होने पर भी संसार-दशा का खण्ड पृथ्वी को जीता और संपूर्ण भारत को राजनैतिक बड़ा विचित्र अनुभव हुमा। इस घटना से उनका मन एक सूत्रता मे बांधने का प्रयन्न किया। बहुत विचलित हो गया। वे सोचने लगे कि भाई को जिम ममय भारत का राज्याभिषेक हुमा था तभी परिग्रह की चाह ने अंधा कर दिया और अहंकार ने उनके बाहबली ने पोदनपुर (लक्षशिला) का शासन सूत्र संभाला विवेक को भी नष्ट कर दिया है। धिक्कार है इस तष्णा था। वे भी भरत की भांति प्रतापी थे। उनका जन्म को ! जो ग्याय-अन्याय का विवेक भला देती है। पब मैं ऋषभदेव की पत्नी मनन्दा से हपा था। उनका शरीर इस राज्य का त्याग कर पारम-साधना का अनुष्ठान करना कामदेव के समान सुन्दर था। इसी से वे 'गोम्मटेश' चाहता हूं पोर बाहुबली संन्यस्त हो गये। कहलाते थे। वे दह तपस्वी और मोक्षगामी महासत्त्व थे। बाहुबली संन्यस्त होने के बाद कायोत्सर्ग-मुद्रा मे इधर जब ऋषभ-साधना मे उत्कर्ष प्राप्त कर रहे थे, ध्यानमग्न हो गए। वे लगातार लम्बे समय तक तपस्या. उधर तब भरत ने अपने शासन का विस्तार किया। रत रहे । भूमि के लता-गुल्म बढ़ कर उनके उन्नत स्कन्धों उन्होंने चारों ओर की सभी प्रशासनिक इकाइयों को अपने तक पहुंच गए। मिट्टी की ऊंची-ऊंची बांबियां उनके पैरों अधीन कर लिया। स्वाभिमानी बाहुबली ने, जो पराधीन के चारों मोर उठ पायीं। इस प्रकार उन्होंने कठोर जीवन को मृत्यु से कम नही मानते थे, भरत की अधीनता तपश्चर्या द्वारा पात्म-साधना की और अन्त में पूर्ण ज्ञानी स्वीकार करने से इन्कार कर दिया । युद्ध अवश्यम्भावी बन स्वात्मोपलब्धि को प्राप्त हुए। उन्हें कैवल्य ज्ञान हो हो गया। ऐसी स्थिति में विचारवान् ज्ञान वृद्धों ने इसका गया।' समाधान निकाला कि "दोनों भाई प्रापस मे शक्ति-परीक्षण ध्यान-मग्न कायोत्सर्ग मुद्रा में वाहबली स्वामी की करले। व्यर्थ ही जन-धन का विनाश न हो। शक्ति भनेक खड़गासन मूर्तियां मिलती हैं, जिनमें सबसे प्राचीन परीक्षण के लिए तीन प्रकार चने गए :- प्रतिमा बादा की गुफा की है। यह सातवीं सदी में निर्मित १. दोनो एक-दूसरे को भोर प्रपलक देखें। जिसकी हुई थी। इसकी ऊंचाई साढ़े सात फुट है। दूसरी प्रतिमा पलक पहले झपके वही हारा। इसे दृष्टि-युद्ध कहा गया। एलोरा के छोटे कैलाश नामक जैन शिला मन्दिर की इन्द्र २. सरोवर मे एक-दूसरे पर जल उछालें । जो माकुल सभा की दक्षिणी दीवार पर उत्कीर्ण है। इस गुफा का होकर बाहर निकल पाये, वह हारा इसे जल-युद्ध कहा निर्माण काल लगभग ८वीं शती माना जाता है। तीसरी १. 'पग्नि', 'मार्कण्डेय', 'ब्रह्माण्ड', ,नारद, लिंग', तथा जिनप्रभसूरि रचित 'विविष तीर्घकल्प' पृ००। ___ 'भागवत', मादि पुराण इस संबंध मे साक्ष्य रूप है। ४. दे० कवि धनपाल रचित-बाहुबली परिव' । २. महा पुराण ३७।२०-२१ । ५.३० वही 'बाहुबली परित। ३. दे. कवि पनपाल रचित 'बाहुबली परिउ' तथा

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