Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 236
________________ बाहुबली : पुष्पदंत के सृजन के प्राइने में 0 डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन, इन्दौर बूढा सियार कल्याण की बात करता है-यह देख करता है, परन्तु उसका चक वर्तन नहीं करता। वह मरत कर मुझे हंसी पाती है। दुनिया में जो ताकतवर चोर है की महत्वाकाक्षा के लिये विराम चिह्न बन कर खड़ा हो वह राजा है दुर्बल को और प्राणहीन बनाया जाता है। जाता है। बढे मत्रो उसे बताते हैं कि जब तक उसके भाई मोर पशु के द्वारा पशु का धन छीना जाता है और प्रादमी प्रधानता नही मानते तब तक चक्र भीतर नही जा सकता। के द्वारा प्रादमो का धन छीना जाता है पोर प्रादमो के भरत, भाइयो के पास दूत के जरिए प्राज्ञा मानने का संदेश द्वारा भादमी का धन । सुरक्षा के नाम पर लोग गिरोह भेजता है दूसरे भाई प्रवीन होने के बजाय अपने पिता बनाते हैं, मोर एक मुखिया की प्राज्ञा में रहते है। मैंने तीर्थंकर ऋषभ से दीक्षा-ग्रहण कर लेते हैं लेकिन बाहुबली सारी दुनिया छान मारी, सिहो का गिरोह नही होता। इसे समस्या का हल नही मानता इमलिये जब दूत से बड़े मान खंडित होने पर जीने के बजाय मर जाना अच्छा है भाई का अभिमान जनक प्रस्ताव सुनता है तो उसका दूत मुझे यही भाता है भाई यदि माता है तो प्राए मैं उसे स्वाभिमान प्राक्रोश भरी चुनौती दे डालता है बिना इसके प्राघात दूंगा पौर पल भर मे संध्याराग की तरह ध्वस्त परवाह किये कि एक चक्रवर्ती सम्राट से जूझने का नतीजा कर दूंगा। चुनौती भरे ये शब्द किसी माधुनिक राजनेता क्या होगा? बाहुबलो का विरोध भाई से नही बल्कि या वामपर्थी के राजनैतिक पार्टी के नही बल्कि अपभ्रश के उसमे रहने वाले राजा स था जिसमे सत्ता को राक्षसो महान कवि पुष्पदंत के महापुराण से उद्धृत बाहुबलो के भूख यो जो दूसरों के स्वत्वो मोर स्वतन्त्रता को छीनता कथन के कुछ अंश हैं। जिनमें वे बड़े भाई भरत के है, मानवीय मूल्य का हनन करती है। अधीनता मान लेने के प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त राज्य पोर मनष्य : कर रहे हैं। पौराणिक सन्दर्भ : जैन विश्वास के अनुसार दूत लौटकर सम्राट को बताता है कि बाहुबली विषय मोगभूमि के समाप्त होने पर जब कम भूमि प्रारम्भ हुई है मेल-मिलाप के बजाय वह लड़ेगा। दूसरे दिन न दोनो तो लोगों के सामने नई-नई समस्याएं पा खड़ी हुइ । प्रथम पक्ष की सेना प्रामने सामने उठ खड़ी होती है। मानव तीर्थंकर ऋषभदेव ने उनका हल खोजा, पोर इस प्रकार संस्कृति का प्रारम्भिक इतिहास कही खून से न लिखा वे कर्ममूलक मानव सस्कृति के निर्णयाक बने । उनके १०१ जाप इस प्राशंका से बूढ़े मन्त्री दोनो को समझाते है पाप पुत्र और दो पुत्रियां थी। पहली रानी से भरत प्रादि सो कुल-मद्र है, यह पाप लोगो का घरेलू झगड़ा है पाप भाई तथा ब्राह्मी थी दूसरी से बाहुबली और सुनंदा । लब प्रापम मे युद्ध कर निपट लें व्यर्थ खून खराबा क्यों ? दोनों प्रशासन के बाद ऋषभनाथ पुत्रों में राज्य का बटवारा भाई इस सुझाव का सम्मान करते हुए कुछ युट करते हैं। कर तप करने के लिये चले गये। सब भाई बटवारे से दष्टि युद्ध, जल पोर मल्लयुद्ध, एक के बाद एक यूर सन्तुष्ट हैं परन्तु भरत महत्वाकांक्षी है वह चक्रवर्ती सम्राट लगातार हारने के बाद सम्राट भरत अपना संतुलन सो बनने के लिये दिग्विजय करता है साठ हजार वर्ष के बैठता है कुल पोर युद्ध की नीति को ताक पर रखबह सफल पभिनय के बाद वह घर लोटता है। गृह नगरी छोटे भाई पर चक्र से प्रहार करता है। वारसालो जाते भयोध्या दुलहिन की तरह सजाई जाती है। मगल वाद्यो देख कर वह नीचा मुख करके रह जाता है। पौर जयगान के बीच सम्राट नगर की सीमा में प्रवेश सत्ता की भूख इतनी कर मोर प्राणलेवा हो सकती

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