Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 255
________________ १२८, पर्व, किरण अनेकान्त के विशद, सप्रमाण उद्धरणों के द्वारा सविस्तार प्रकाश मिल जाती है। फलतः यह कृति शोपापियों के लिए भी हाला गया है। लेखक ने इस प्रक्रिया में बिना किसी भेद परम उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा विश्वास है। कुल मिला माव के जनों के सभी सम्प्रदायों तथा जनेतर उद्धरणों को कर कृति के लिए लेखक एवं प्रकाशक सभी धन्यवादाह हैं। ग्रहण किया है। यह लेखक को विशेषता ही है। पाशा है इसका अधिक-से-अधिक प्रचार-प्रसार होगा पौर यह लोक में उपयोगी सिद्ध होगी। सोद्धरण विशद वर्णन में एक लाभ यह भी है कि यदि किन्हीं प्रसंगों में, किन्ही अंशों में किसी को मतभेद -गोकुल प्रसाद जैन, भी हो तो उन्हें परिमाजित करने मे सहज ही सहायता सम्पादक DOD अनागत चौबीसी . A . . न यह प्रनागत चौबीसी का पृष्ठभाग है जिसमें नीचे स्पष्ट शब्दों में अंत में "नागत चोवीसी"मों को प्रातिशी शीशे (Magnifying glass) द्वारा पढ़ा जा सकता है। इसमें यशकीति को परम्परा तथा मतिकार की बंश-परम्परा अंकित है जो "अनागत-चौबीसी:दो दुर्लभ कलाकृतियों" शीर्षक लेख (लेश इसी अंक में प०१० पर मरित है) में विस्तार से वर्णित है। इसका निर्माण संवत् १६७४ की बेठ सुबी नवमी को कराया गया था। 000

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