Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 162
________________ बैन कासो : मूति इस समय जैन मठ के भट्टारक गही में विराजमान स्थान विद्यमान है। कहा जाता है कि इस मंडप में सोनों स्वस्ति श्रीमद्भिनव भट्टारक प. पूज्य बास्कोति पन्डिता के न्याय-प्रन्यय का विचार भोर निर्णय होता। इसी चार्यवयं स्वामीजी एम.ए. (हिन्दी), एम० ए० (संस्कृत) कारण से मंडप का नाम 'न्यायबसदि' नाम पड़ानो साहित्यशास्त्री, सिद्धान्तशास्त्री, उपाध्याय (एचपी. सार्थक ही है। इसके पास ही श्री चन्द्रकीतिमुनि (१० सन् दर्शन) का पट्टाभिषेकोत्सब दि. ३०-४--१९७६ को १६३७) का एक समाधिस्थान और सति सहगमन करने सम्पन्न हुपा था। अनेक भाषामों के ज्ञाता, उदमट विधान का एक स्थान "महासतिकट्टे (मास्तिक) भी है। ५० पू० भट्टारकजी के संचालकत्व व सफल नेतृत्व मे क्षेत्र ३. चोटर राजमहल : रात्रि-दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है। मूडबिद्री के दक्षिण कन्नड जिले के न राजामों मे पोटरबंशीय अठारह मन्दिर पोर भमध्य रत्नप्रतिमाएं प्रापके पापीन राजा बड़े प्रसिद्ध थे। इनकी राजधानी पहले "उल्लाम" हैं । पाप इन सब के मेनेजिंग दस्टीव सर्वाधिकारी में थी। इळे बोडके राजा विष्णुवर्षन के प्रपीन रहने वाले मडबिद्री के अठारह भव्य जिनमंदिर : राजागण स्वतन्त्र होने के बाद बोटर बंशीय राजापों ने मूरचिती मे कुल मिला कर मठारह भव्य जिनमन्दिर अपनी राजधानी को मुडविद्रो पोर इसके निकटवर्ती हैं। इसमें श्री पार्श्वनाथ बसदिको विमवन तिलक 'तुतिगे" मे स्थापित किया। इन राजामों ने लगभग चुडामणि बसदि' भी कहते है। इन मन्दिरों के अलावा ७०० वर्ष तक (११६० से १८६७ ई. सन्त क) स्वतंग अन्य मन्दिरों मे भी शिल्पकला की उच्चकोटि की गरिमा रूप से शासन किया। इनके वंशज माज भी महविद्री खुल कर सामने आई है। 'बसदि' यह सस्कृत वसति' (चोटर पंलेस) मे रहते है जिनको सरकार से मालिकामा शब्द का तद्भव है। इसी प्रकार होसबसदि, गवसदि. Poltical Pension) मिलता है। यह राजपर पापि घोहरबसदि, हिरेबसदि, वेटकेरी बसवि, कोटिबसदि, जीर्ण-शीर्ण है फिर भी इसे देखकर इसकी महत्ता का विक्रमशहिवसदि, कल्लूबसदि, लेप्पद बसवि, देरम्मोहि अनुभव कर सकते हैं। राजसभा के विशाल स्तंभों पर वसदि, चोलशेहिबमदि, महादेवशेहिबसदि, वैकतिकारि- खुवे हए चित्र दर्शनीय हैं। इनमें चित्रकला की दृष्टि में बसदि, केरेबसदि, पहबसदि, श्री जैनमठबसविन. "मबमारीकुंजर" पोर “पचनारीतुरग" की रचना और पाठशालेयबसदि मादिसदि विद्यमान है जो प्रतिबिम्बों- शिल्पकला अत्यन्त मनोज है। जिनलतामों से शोभायमान है और जहा नित्य भनेक ४. भी बीरवाणी विलास न सिखात भवन: धर्मानुष्ठान सम्पन्न होते रहते हैं। यह एक शास्त्रभंडार है। स्व. पं० लोकमावली मूडबिद्री के अन्य दर्शनीय स्थल शास्त्री ने इसका निर्माण किया और सैकड़ों तापनीय ग्रंथों को अन्याय गांवों में जाकर संग्रहित किया और यहाँ १. समापिस्वान (निविषियो): सुरक्षित रखा है। इसकी पलग ट्रस्टी है। मुद्रित बंबों का यहाँ स्वर्गीय मठाधिपतियों की १८ समाधियों के भी संग्रह मच्छा है। अतिरिक्त प्रबुसेट्टी एवं प्रादुसेट्टो नामक दो बीमान् श्रावकों ५ श्रीमती रमारानी जंग शोध संस्थान : की समाधियां बेटकेरी बसवि से १ फांग पर विद्यमान इस भवन का निर्माण स्वनामधन्य, श्रावशिरोमणि, है। परतु यह जानना कठिन है कि ये समापियो किन स्व. साह श्री शांतिप्रसाद जी ने लाखों रुपये व्यय करके किन को हैं ? पोर कब निर्माण हुई है। केवल दो एक किया है। इस संस्थान या भवन में परम पुनीत अमूल्य समाषियों में शिललेख विद्यमान है। तारपनों पर लिखे सहस्रशः जैन पुराण, दर्शन, धर्म, २. कोसंकल्सुम्याय बसवि: सिद्धांत, प्याय, ज्योतिष, प्राचारपरक जिनवाणी मा' का मुरविडी से करीब १ मोल पर 'कोकल्लु' मापक संबह । इन तारपत्रीय जैन शास्त्रों के अध्ययना। स्थान में 'न्यायवसाबि' नामक एक मंदिर एवं एक समावि. प्रलोकनार्य देश-विदेश के विधान यहाँ पधार कर, इन

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