Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 186
________________ बाहुबली मूर्तियों को परम्परा प्रब राज्य संग्रहालय, भवनेश्वर में प्रदर्शित अनेक जैन छोडकर सम्भवत: पोर किसी में सांप को बाबिया नहीं मतियों में से कुछेक में इस प्रकार के मूत्यंकन है। दिखायी गयी है। इसके अतिरिक्त एक ऐसा मयंकन भी प्राप्त हमा उत्सर भारत की मर्तियों बाहबली की बहिनोजो इन सभी से प्राचीन कहा जा सकता है। उडीसा के ब्राह्मी पौर सुन्दरी का अंकन नही है। जहाँ भी दो स्त्रियाँ क्योंझर जिले में अनन्तपुर तालुका मे बोला पहाड़ियों के दिखायी गई हैं वे या तो सेविकायें हैं, या फिर विचामध्य स्थित पोदसिगिदि नामक ऐतिहासिक स्थान है। धरियां जो जता गुच्छों का अन्तिम भाग हाथ में पामे यहाँ ऋषभनाथ की एक मूर्ति प्राप्त हुई है। उड़ीसा में हैं, मानो शरीर पर से लतायें हटा नही। एलोरा की प्राप्त यह प्रथम जैनमूर्ति है जिस पर लेख उत्कीर्ण है। गुफा की बाइबली मति मे जो दो महिलायें अंकित इस में प्रागन पर वृषभ लांछन के सामने दो बडांजलि मकुट पोर पाभूषण पहने हैं। बेनामी पौर सुन्दरी हो भक्त प्रकित हैं जो भरत और बाहुबली माने जा सकते हैं, सकती हैं। प्रोर तब यह इस प्रकार की मूर्तियों में मर्वामिक प्राचीन बिलहरी की दो मतियों में से एक में दो सेविका, होगी । जो विद्याधरी भी हो सकती हैं, लत्तावृत्त पामे हए एक पटली चित्रांकन : हैं। ये त्रिभंग-मदा मे हैं। मति के दोनों पोर पोर बाहबली की गृहस्थ अवस्था का, भरत से युद्ध करते कन्धों के ऊपर जिन-प्रतिमायें है। मरी मति में भक्तममय का, मत्य कन तो नही किन्तु चित्रांकन अवश्य प्राप्त मेविकायें प्रणाम को मद्रा में लता-गुच्छ पाने दिसावी हमा है। प्राचीन हस्तलिखित शास्त्रो के ऊपर-नीचे जो गयी है। काष्ठ-निर्मित पटालियां बांधी जाती थी उनमें से एक पर ज्यों-ज्यों ममय बीतता गया, उत्तर भारत की कायोयह चित्रांकन है । मूलतः जैसलमेर भण्डार को यह पटली त्मर्ग पतिमानों मे बाहुबली को साक्षात् तीर्थकर की पहले साराभाई नवाब के पास थी और अब बम्बई के प्रतिष्ठा दर्शाने के लिए सिंहासन, धर्मचक, एक-दो या कुसुम और राजेय स्थली के निजी मप्रहालय में है। तीन छत्र भामण्डन, मालाघारी, दुन्दुभिवावक और यहां बारहवी शती की इस पटली की रचना सिद्धराज जयसिंह तक कि यक्ष-यक्षियो का भी ममावेश कर लिया गया। चालुक्य, १०९४-११४४ ई., के शासनकाल मे विजय. श्रीवत्स चिह्न तो अंकित है ही। सिंहाचार्य के लिए हुई थी। इसका रचनास्थल राजस्थान इसीलिए प्रथम कामदेव बाहुबली को अब सम्पूर्ण होना चाहिए । भरत-बाहुबली-युद्ध इस पटलो के पृष्ठभाग श्रद्धाभाव से भगवान् बाहुबली कहा जाता है, पर उनकी पर प्रस्तुत है जिस पर घुमावदार लतावल्लरियो के वृत्ता- मूर्ति को तीर्थकर-मूर्ति के समान पूजा जाता है। कारो मे हाथी, पक्षी पौर पौराणिक शेरो के प्राल कारिक धोती पहने बाहुबली को मतिया भी कतिपय स्वेतांबर अभिप्राय अंकित हैं। मन्दिरो मे प्राप्त है । दिलवाड़ा (राजस्थान) मन्दिर की उत्तर और दक्षिण की बाहुबली-मूर्तियों में रचना-भेद विमलबसहि, शत्रुजय (गुजरात) के वादिना मन्दिर बाहुबली की मूर्तियों को सामान्य विशेषता यह है और कुम्भारिया (उत्तर गुजरात) के शान्तिनाथ मन्दिर कि उनकी जंबामो, भुजानों और वक्षस्थल पर लताएँ मे लगभग ११-१२वी शताब्दी की इस प्रकार की मतियां उस्कोर्ण रहती है जो इस बात को परिचायक है कि बाह- प्राप्त है। इन मूर्तियों का यद्यपि अपना एक विशेष साँवयं बली ने एक स्थान पर खड़े होकर इतने दीर्घ समय तक है तथापि यह कहना अनुचित न होगा कि बाहुबली की कायोत्सर्ग ध्यान किया कि उनके शरीर पर बेलें चढ़ गयी। तपस्या और उनकी कायोत्सर्ग मुद्रा का समस्त माण दक्षिण की मूर्तियों में परणों के पास साप की बीविया प्रभाव दिगम्बरत्व में हो है। (बमोठे) हैं जिनमे से सौप निकलते हुए दिखाये गए हैं । विदेशक, भारतीय ज्ञानपीठ, किन्तु उत्तर की मूर्तियों में, प्रभासपाटन की मूर्ति को बी/४५.४७, कनाट प्लेस, नई दिल्ली-1

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258