Book Title: Anekant 1980 Book 33 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

Previous | Next

Page 134
________________ प्रवणबेलगोलशिलालेख ( इतिहास नाम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य) हो रह गए, भद्रवाह में प्रतिष्ठा प्राप्त करने तथा उत्तर-मध्य भारत में जन स्वामी को वहां समाधिमरण हमा और उनके पश्चात ७०० धर्म को व्यापकता एवं दक्षिण में जैन धर्म प्रसार के विषय अन्य साधुषों को भी वहाँ मे समाधि मरमहमा । मिनालेबो मे ऐतिहासिक स य प्रस्तुत करते है। इन शिलालेखो से का काव्य सरस तथा प्रवाहमय भाषा में सुन्दरतम शमा. संशलिष्ट है जैन सस्कृति को सार्वभौमिकता के सवाहक तथा वली मे रचा गया है। घटनामों व दृश्यो का चित्रण बहुत उस समय के महान धर्मगुरु प्राचार्य भद्रबाहु तथा महान सजीव हुमा। प्रतापी गम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य विधान, कटनीति एवं प्रथंसन् १९५३ में उत्कीर्ण लेखक्रमाक ७१ मे भद्रबाहको व्यवस्था के महान प्राचार्य चाणक्य का जीवन वृत्त एवं श्रत के वली एवं चनगुप्त को उनका शिष्य कहा गया है। कृतित्य भी जो वस्तुतः चन्द्रगुप्त माय के साम्राज्य के सन ११२६ मे उत्कीर्ण लेख क्रमांक ७७ मे जो पाश्वनाथ निमोता थे। बदि के एक स्तम्भ पर अकित है लिखा है कि स्वामी मूलमघ एवं कुन्दकुन्द प्राम्नाय के प्राचार्यों को पट्राभद्रबाहु का शिष्य बनने के कारण चन्द्रगुप्त की इतनी वली श्रवणबेल्गोल के माधार पर ही तैयार की गई है। पुण्य महिमा हुई कि वन देवता भी उनकी सूषा करने शिलालेख क्रमाक ? में भगवान महावीर के प्रमख गणवर लग । लगलग सन ६५० में अकित शिलालेख क्रमाक ३४ गौतम से लेकर भाबाह स्वामी तक प्राचार्यों के नाम मे उल्लेख है कि जो जैन धर्म मनि भद्रबाह और चन्द्र गुप्त क्रमबद्ध रूप मे यहाँ दिए गए हैं जिसे सम्मिलित है लोहाय, के तेज में भारी समृद्धि को प्राप्त हमा था उसके किचित जम्बू स्वामी, विष्णु देव, अपराजिन, गोवर्धन, भद्रबाह, क्षीण हो जाने पर शातिसेन मनि ने उसे पुनरुत्थापित विशाम्ब, प्रोष्ठिल कृतिकाय, जयनाम सिद्धार्थ घनसेन. किया। नागरी लिपि के ११वी शताब्दी के शिलालेख बधिला । होयसल नरेश विष्णवर्धन द्वारा दिमम्बर ११२४ क्रमांक २५१ मे जो चन्द्रगिरि पर भद्रबाहु गुफा मशिला मे उत्कीर्ण लख क्रमाक ५६६ म भो गौतम गणवर स पर उत्कीर्ण है उल्लेम्व है कि जिनचन्द्र स्वामी ने भद्रबाह लेकर श्रीपाल विद्यदेव तक की परम्परा दी गई है। कुछ स्वामी के चरणों को नमस्कार किया। (श्री भावाह शास्त्रकारी तथा उनकी रचनामों के विषय मे भी उल्लेख स्वामिय पादुमं जिन चन्द्र प्रणमता) चद्रगिरि पर्वत के किये गये है। लेख क्रमाक ३६०, ७७, ७१, ५६६, ३६४ शिविर पर भी चरण-चिह्न अंकित है। चरणो के नीच पादि मे कुछ शास्त्रकारो तथा उनकी रचनामो के विषय १३वी शताब्दी मे उस्कोणं लग्व क्रमांक २५४ मे उल्लेख में उल्लेख किये गये है। है कि यह चरण भद्रबाहु स्वामी के है (भद्रबाह भलि अनेक शिलालेखो मे जिनमें जैनाचार्यों को जीवन की स्वामिय पाद)। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक राज्य मे घटनामों का उल्लेख है प्रथवा जो उनको प्रशस्ति प मे प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान श्री रगपट्टन के सन ९०० मे अंकित है उल्नख किया गया है कि वे शास्त्राय मति उत्कीर्ण एक लेख मे जो श्रवणबेलगोल से सम्बन्धित निपुण थे और उन्होने प्रतिवादियों को प्रनेको बार ज्ञान उल्लेख है कि कलबप्पू शिवर (चन्द्रगिरि) पर महामनि एव तकं द्वारा परास्त किया। दक्षिण वाले महानवमि भद्रबाह और चनगुप्त के चरण चिह्न बने हैं। सन १४३२ मण्डा के एक स्तूप पर अकित लेख क्रमाक ७० में उल्लेख के विस्तृत लेख क्रमाक ३६४ में जो विध्यगिरि पर निर्मित है कि १२वीं शताब्दी मे महामण्डलाचार्य कीति पंडित सिद्धरबसदि के बाएं स्तम्भ पर अकित है एवं भद्रबाहु ने चार्वाक, बौद्ध, नयायिक, कापालिक एवं वैशेषिको को तथा चंद्रगुप्त की प्रशस्ति रूप में है, उल्लेख है कि चद्रगुप्त शास्त्रार्थ में पगस्त किया। श्रुतकेवली भद्रबाह कि शिष्य थे। जैन मुनि महिलसेण की नषिद्धया रूप मे सन् ११२८ जैन इतिहास की दष्टि में यह शिलालेख बहुत महत्व में अंकित विस्तत लेख क्रम संख्या ७७ मे जो पाश्र्वनाथ पूर्ण है। यह सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के जैन धर्मावलम्बी के स्तंभ पर अकित है उल्लेख है कि मुनि महेश्वर ने ७७ होने, स्वामी भाबा के उस समय विशालतम साम्राज्य में जो पाश्र्वनाष के स्तर पर प्रकित है उल्लेख है कि मनि

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258