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किरण ८]
वादीभसिहसूरिकी एक अधूरी अपूर्व कृति स्याद्वादमिद्धि
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विस्तार ही उपयुक्त जान परता है। वे ढाई कारिकाएँ निःसारभूतमपि बन्धनतन्तुजातं,
मूर्ना जनो वहति हि प्रसवानुषङ्गात् । देहारम्भोऽग्यदेहस्य वक्तृत्ववदयुक्तिमान् । जीवन्धरप्रभवपुण्यपुराणयोगादेहान्तरेण दहस्य यद्यारम्भोऽनवस्थितिः।।
द्वाक्यं ममाऽप्युभयलोकहितप्रदायि ॥३॥ अनादिस्तत्र बन्धश्च त्यक्तोपात्तशरीरता ।
अतएव वादीभसिंह गुणभद्राचार्यमे पीछेके है। अस्मदादिवदवाऽस्य जातु नैवाऽशरीरता ।।
२. सुप्रसिद्ध धारानरेश मोजकी झूठी मृत्युके दहस्यानादिता न स्यादतस्यां च प्रमात्ययात् ॥ शोकपर उनके समकालीन मभाकवि कालिदास, जिन्हे
-६-२७३. ०७४३। परिमल अथवा दूसरे कालिदास कहा जाता है. द्वारा इन दानो उद्धरणाका सूक्ष्म ममीक्षण करनेपर कहा गया निम्न श्लोक प्रसिद्ध हैकोई भी सूक्ष्म-समीक्षक यह कहे बिना न रहेगा कि अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती । वादीभमिहका कथन जहाँ मौलिक और संक्षिप्त है पण्डिता खण्डिताः सर्वे भोजराजे दिवंगते ॥ वहाँ विद्यानन्दका कथन विस्तारयुक्त है और जिसे और इमी नोकके पूर्वार्धकी छाया मत्यन्धर वादीभसिंहके कथनका खुलासा कहना चाहिए । अतः महाराजके शोकके प्रसङ्गमे कही गई गद्यचिन्तामणिविद्यानन्दका समय वादीमसिहकी उत्तगवधि है। की निम्न गद्य में पाई जाती हैयदि ये दानो विद्वान समकालीन भी हो जैसा कि 'अद्य निराधारा धरा निरालम्बा सरस्वती।' सम्भव है ता भी एक दृमरका प्रभाव एक दूसरपर अतः वादाभामह राजा माज (राव
अतः वादीभमिह राजा भोज (वि० सं० १०७७से पड़ सकता है और एक दुसरेके कथन एवं उल्लेखक वि. १५१२)के बादके विद्वान है। श्रादर एक दूसरा कर सकता है। विद्यानन्दका समय य दो बाधक प्रमाण हैं जिनमे पहलेके उद्भावक हमने अन्यत्र ई. ७७५मे ई०८४. निर्धारित किया पं० नाथूरामजी प्रेमी है और दुसरेके स्थापक श्रीकुप्पुहै। अतः इन प्रमाणांसे वादीभमिहसूरिका ममय स्वामी शास्त्री तथा समर्थक प्रेमीजी है। इनका ईसाकीवी और हवी शताब्दीका मध्यकाल (ई०७० समाधान इस प्रकार हैसे ई०८६०) अनुमानित होता है।
१. कवि परमेष्ठी अथवा परमेश्वरने जिनसेन और बाधकोंका निराकरण
गुणभद्रके पहले 'वागथसंग्रह' नामका जगप्रसिद्ध
पुगण रचा है। और जिसमें वेशठशलाका पुरुषोइस समयके स्वीकार करनेमे दो बाधक प्रमाण का चरित वर्णित है तथा जिसे उत्तरवर्ती अनेकों उपस्थित किये जा सकते है और वे य है
पुगणकागेन अपने पुराणोंका आधार बनाया है। १. क्षत्रचूडामणि और गधचिन्तामणिमे जीवन्धर
खद जिनमेन और गुणभद्रने भी अपने आदिपुराण स्वामीका चरित निबद्ध है जो गुणभद्राचार्यके उत्तर
तथा उत्तरपुराण उमाके आधारसे बनाये हैं-इनका पुराण' (शक सं० ७७०, ई०८४८) गत जीवन्धर- मूलस्रोत कवि परमेष्ठी अथवा परमेश्वरका वागर्थचरितसे लिया गया है। इसका संकेत भी गद्यचिन्ता
संग्रह पुराण है, यह प्रमीजी स्वयं स्वीकार करते है । मणिके निम्न पद्यमे मिलता है
तब वादाभमिहने भी जीवन्धरचरित जो उक्त प्रमाण१ पेमीजीने जो इसे 'शक सं. ७०५ (वि सं.८४०) की
में निबद्ध होगा, उर्मा (पुराण)से लिया है. यह
में! रचना' बतलाई है (देखो, जैनमा. और इति. प्र.YER) कहनेमें काई बाधा नहीं जान पड़ती। गद्यचिन्तावह प्रसादिकी गलती जान पड़ती है। क्योंकि उन्हीने उसे १ देखो, डा. ए. एन. उपाध्येका 'कवि परमेश्वर या अन्यत्र शक सं. ७७०, ई.८४८के लगभगकी रचना परमेष्ठी' शीर्षक लेख, जैन सि. भा. भाग १३, कि.२। सिद्ध की है, देखो, वही पृ. ५१४ ।
२ देखो, जैनमाहित्य और इतिहास पृ. ४२१ ।।