Book Title: Anekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 520
________________ किरण १२ ] धर्म और क्तमान परिस्थितियाँ [४६९ सिक्केका प्रचलन एक धार्मिक नियम है सिक्केका प्रचलन एक धार्मिक नियम है इस बातकी पुष्टि सिक्केके इतिहाससे स्वयं होजाती है। सिक्का किसी व्यापारी द्वारा नहीं चलाया गया है. बल्कि इसे किसी राजा ने चलाया है। इमका रहस्य यह है कि सिक्के की धाक और साख तभी जम सकती थी, जब समाजको इस बातका विश्वास हो जाता है कि इसकी धातु निर्दोष और तोल सही है यदि व्यापारी वर्ग इसका प्रचलन करता तो वह अपनी चालाकीसे उक्त दोनो बातोका निर्वाह यथार्थरूपमे नहीं कर सकता, जिसका परिणाम सिक्के राज्यमें भी अराजकता होती और थोड़े दिनोमे मिक्का भी निकम्मी चीज बन जाता। अतः धोरवेबाजीका दूर करनेके लिये तथा समाजमे अमन-चैन स्थापित करनेके लिय सिक्केके बीचमे राजाको पड़ना पड़ा। इस प्रकार इस धार्मिक नियमने व्यक्ति और समाजकी अनेक समस्याओकी जटिलताको दूर कर दिया। शारीरिक शक्ति विकासक र्थसम्बन्धी धार्मिक नियमोंका ऋमिक विकास यद्यपि मुद्राके जन्म होजानेसे मानवकी शारीरिक शक्तिके विकासमे सुविधा प्राप्त हुई है। पर कुछ चालाक और धूर्त व्यक्ति अपने बौद्धिक कौशलसे अन्य व्यक्तियोंके श्रमका अनुचित लाभ उठाकर उनका शापण करते हैं. जिमम मानव-समाजमे दो वर्ग स्थापित हो जात है-एक शापित और दृसग शापक । प्रागैतिहासिक कालस ही मानव अपनी शारीरिक शक्तिके विकासक लिय धार्मिक नियमाका प्रचलन करता चला आरहा है। परिस्थितियोके अनुमार सदा इन नियमाम संशोधन होता रहा है। उदयकाल और आदिकालमें जब लोग वैयक्तिक सम्पत्ति रखने लगे थे. अर्थार्जनके असि, मास. कृपि. सेवा, शिल्प और बाणिज्यके नियम प्रचलित किय गय थे, जिन नियमांमे श्राबद्ध होकर मानव शारीरिक शक्तिका विकमित करने के लिय अर्थ प्राप्त करना था। जब-जब आर्थिक व्यवस्थामं विपमना या अन्य किन्हीं भी कारणांसे बाधा उत्पन्न हुई धमने उसे दूर किया। अहिमा, सत्य, अचीयं और परिग्रह-परिमाण से नियम है, जो आर्थिक समस्याका मंतुलन समाजमे रखते है। अर्थ-सम्बन्धी इन धार्मिय. नियमाका पालन राजनाति और ममाज इन दानाक द्वारा ही हो सकता है । गजनीति मदा आर्थिक नियमांक आधारपर चलती है तथा समाजको भित्ति इसापर अवलम्बित है। वर्तमान कालीन आर्थिक नियमांक विचारविनिमयसे तो यह बात और भी स्पष्ट हो जानी है। पूजीवादी विचारधाराका धार्मिक दृष्टिकोण सम्भवत: कुछ लोग पूजीवादी विचारधागका नाम मुनकर चौक उठगे और प्रभ करेंगे कि धर्मक साथ इसका सम्बन्ध कैमा ? यह ना एक मामाजिक या राजनैतिक प्रभ है, धर्मको इमक बीचमे डालना उचित नहीं । किन्तु विचार करनपर यह म्पष्ट मालूम हो जायगा कि धर्मका सम्बन्ध आजकी या प्राचीनकालकी मी आर्थिक विचारधागोमे है। यदि यह कहा जाय कि किसी विशेप परिस्थनिमे कोई आर्थिक विचारधारा धार्मिक नियम है, तो अनुचित न होगा, क्योकि वह अपने समयमे ममाजमे शान्ति और व्यवस्था स्थापित करती है। पूजीवादकी परिभाषा समाजके चन्द व्यक्ति अपने बुद्धिकौशल द्वाग उत्पनिके साधनापर एकाधिकार कर उत्पादन मामग्रीको क्रियात्मकरूप देनके लिय मजदुगको नौकर रख लत है। मजदूर अपने - श्रमसे अर्थार्जन करते हैं, जिसके बदलमे पूँजीपति उन्हें वेतन देत है. परन्तु यह वेतनश्रमकी

Loading...

Page Navigation
1 ... 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548