Book Title: Anekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 539
________________ ४८९ विषह धीमी रफ्तारसे होरहा है, उससे मुझे 'अनेकान्त' बनारससे प्रकाशित करनेकी तनिक भी हिम्मत नहीं होती।" इसे पढ़कर हृदयमें उदित हुई आशापर फिरसे तुषारपात हो गया और मैं यही सोचने लगा कि यदि गोयलीयजीने प्रेसकी कोई समुचित व्यवस्था न की तो मुझे अब वीरसेवामन्दिरकी ओरसे एक स्वतन्त्र प्रेस खड़ा करना ही होगा, जिसकी उसके तय्यार ग्रन्थोंके प्रकाशनार्थ भी एक बहुत बड़ी पारूरत दरपेश है और इसलिये इस किरणमें प्रेसकी व्यवस्था तक कुछ महीनोंके लिये अनेकान्तको बन्द रखनेकी सूचना कर देनी होगी। परन्तु पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि डालमियानगरसे बनारस जानेपर गोयलीयजीका विचार बदल गया और उनमें मुनिकान्तिसागरजी आदिकी प्रेरणाको पाकर उस हिम्मतका संचार हो गया जिसे वे अपनेमें खोए हुए थे और इसलिय अब वे बनारससे 'अनेकान्त'को प्रकाशित करनेके लिये तत्पर होगये है; जैसा कि इसी किरणमें अन्यत्र प्रकाशित उनके "प्रकाशकीय वक्तव्य'से प्रकट है। वक्तव्यके अनुसार अब 'अनेकान्त' बिलकुल ठीक समयपर निकला करेगा, सुन्दर तथा कलापूर्ण बनेगा, बहुश्रुत विद्वानोसे लेखोंके माँगनेके लिये मुंह खोलनेमें किसीको कोई संकोच नहीं होगा, जैनेतर विद्वानोके लेखोंसे भी पत्र अलंकृत रहेगा और उनके लेखोंको प्राप्त करनेमें आत्मग्लानि तथा हिचकचाटका कोई प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होगा-ज्ञानपीठ उसके पीछे जो भी व्यय होगा उसे उठानेके लिये प्रस्तुत है। और इसलिये 'अनेकान्त' आगेको घाटेमें न चलकर दूसरे पत्रोकी तरह लाभमें ही चलेगा, उसके हितैषियोकी संख्या भी आवश्यकतासे अधिक बढ़ जायगी और फिर गोयलीयजीको अपने विद्वानोका "प्रेसमें जूतियाँ चटकाते फिरना" भी नही खटकेगा अथवा उसका अवसर ही न आएगा। संक्षेपमें अबतक जो कुछ कमी अथवा त्रुटि रही है वह सब पूरी की जायगी। इससे अधिक ग्राहको तथा पाठकों आदिको और क्या आश्वासन चाहिये ? मुझे गायलीयजीके इन दृढ़ सङ्कल्पाको मालूम करके बड़ी प्रसन्नता हुई। हार्दिक भावना है कि उन्हें अपने इन सङ्कल्पोको पूरा का नं पूर्ण सफलताकी प्राप्ति होवे ओर मुझे अपने प्रिय 'अनेकान्त'को अधिक उन्नत अवस्थामें देखनेका शुभ अवसर मिले। अन्तमे मै इस वपके अपने सभी विद्वान लेखकों और सहायक सज्जनांका आभार व्यक्त करता हुआ उन्हे हृदयसे धन्यवाद देता हूँ और इस वर्षके सम्पादन-कार्यमे मुझसे जो कोई भूलें हुई हो अथवा सम्पादकीय कर्तव्यके अनुरोधवश किये गये मेरे किसी कार्य-व्यवहार से या स्वतन्त्र लेखसे किसी भाईका कुछ कष्ठ पहुँचा हो तो उसके लिय मै हृदयसे क्षमाप्रार्थी हूँ, क्योकि मेरा लक्ष्य जानबूझकर किसीको भा व्यथ कष्ट पहुंचानेका नही रहा है और न सम्पादकीय कर्तव्यमे उपेक्षा धारण करना ही मुझ कभी इष्ट रहा है। साथ ही, यह भी निवेदन कर देना चाहता हूँ कि अगले वर्ष मै पाठकांकी सेवामें कम ही उपस्थित हो सकूगा; क्योकि अधिक परिश्रम तथा वृद्धावस्थाके कारण मेरा स्वास्थ्य कुछ दिनोसे बराबर गड़बड़में चल रहा है और मुझे काफी विश्रामके लिये परामर्श दिया जा रहा है। वीरसेवामन्दिर, सरसावा, ता. २५-३-१६४६ जुगलकिशोर मुख्तार सर सेठ साहबका विवाहोत्सवपर अनुकरणीय दान अनेक पदविभूषित सर सेठ हुकुमचन्दजी इन्दौरके शुभ नामसे समाजका बच्चा २ परिचित है। राष्ट्र, समाज और धर्मके क्षेत्रमें आपके द्वारा प्रारम्भसे ही अनेक उल्लेखनीय सेवाएँ हुई हैं और आज भी होरही है। समाजके आह्वानपर आप सदा उसकी सेवाके लिये आगे खड़े मिलते हैं। उनकी दानवीरता, विनम्रता और सहानुभूति तो अतुलनीय हैं। और इन्हीं गुणोंके कारण वे आजकी स्थितिमें भी, जब पूँजी और अपूँजीका संघर्ष चालू है,

Loading...

Page Navigation
1 ... 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548