Book Title: Anekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 449
________________ ४०२ ] दिखती हैं। भयङ्कर युद्ध होता है और परिणामस्वरूप बीभत्स चित्रणकी भी ओर संक्षेपमें कविने ध्यान दिया है। विद्याधर विद्या- बलसे माया- युद्ध करता है। कभी मंझावात चलने लगती है. कभी प्रलयजल बरसने लगता है। अद्भुत रस यहाँ वीरको सहायता करता दिखता है । विद्याधरने राजा मृगाङ्कको बाँध लिया. जम्बूने युद्ध करते हुए राजाको छुड़ा लिया और पराजित करके उसे भगा दिया । जम्बूकी विजयपर नारद श्रानन्दसे नाचने लगते हैं, सर्वत्र आनन्द होने लगता है । विद्याधर गगनगति प्रकट होकर मृगाङ्कराजसे जम्बूकुमारका परिचय देता है । वीररस के इस विस्तृत प्रसंगके पश्चात् ही कवि शृङ्गारकी भूमिका प्रारम्भ कर देता है। अनेकान्त [ वर्ष यद्यपि सब लोग उन्हें ऐसा न करनेको समझाते हैं। विवाहके प्रसङ्ग में कविने वैराग्यकी स्थितिको छोड़कर सुन्दर विवाहका वर्णन प्रस्तुत किया है. विवाहके 'दाइजे', तथा भोजनके सरल वर्णन किए हैं, जम्बू नववधुओं के साथ वासगृह में जाते हैं। इस प्रसङ्गमें कविने महिलाओके हाव-भावों (चेष्टाओं) का अच्छा चित्रण किया है । जम्बूका मन इन सब व्यापारोमे में नही रमता, उसकी पत्नियाँ अनेक कथाएँ कहती हैं किन्तु वह दृढ़ रहता है । विद्युच्चर भी जम्बूके हृदय में संसारके प्रति आसक्ति उत्पन्न करानेमे श्रमफल होता है । कथाकी समाप्ति वैराग्यमें होती है । ससारके मायामोहसे विरक्त होकर जम्बू उनकी पत्नियाँ. विद्युवर सभी तपस्या करते है और सद्गति प्राप्त करते हैं । कृतिमें कविनं वीररस. शृङ्गार और शान्ति रस के सफल चित्र प्रस्तुत किए हैं। चरित्र चित्रण भी कवि पूर्ण सफल हुआ है । पूर्वजन्मोसे ही जम्बूकी प्रवृत्ति कर्त्तव्यमे दृढ़ और धार्मिक है. जम्बू अत्यन्त साहसी वीर है, उनकी चारित्रिक दृढ़ताको बड़े ही सफल ढङ्गसे कविने व्यक्त किया है— तरुणियोके पास रहते हुए भी वह उनमे विरक्तिभाव रखता है पासट्टिओवि तरुणी गियरु, arrt इवहि पुंजिउव्व कयरु ॥ ३-६ ॥ अनेक प्रकारकी उक्तियांका उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता उद्धरत वोलत होतो, वि कुमारु ण भवे रमइ ॥ ६-११ साहसकी परीक्षाके दो प्रसङ्ग मिलते है-: - उन्मक्त हाथीको वह परास्त कर देता है (संधि ४) और अकेला ही विद्याधर रत्नशेखर और उसकी सेनापर विजय कर लेता है। उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली है इसी लिए विद्युच्चर भी उसका अनुसरण करता है । इन सब गुण के साथ उसमें महज्जनोचित शिष्टाचारीके भी दर्शन होते हैं । माताकी आज्ञाका वह पालन करता है। विद्युश्चरका परिचय उसकी माता अपने भाईके रूपमें कराती है-वह देखते ही खड़ा होजाता मृगाङ्क राजा जम्बूको केरल नगरी दिखाते हैं । नगरका रर्माणियाँ जम्बूका देखकर कहने लगती है कि विलासवती धन्य है जिसके हाथमे श्र णिकराजका समस्त राज-वैभव रहेगा | जम्बू और विलासवतीका परिणय होता है । जम्बू मगध पहुँचते हैं और यहीं से शृङ्गार और वैराग्य ( संसार में अनुरक्त प्रवृत्ति तथा निवृत्ति) का प्रसङ्ग प्रारम्भ होता है। आठवीं मन्धिसे यह प्रसङ्ग प्रारम्भ होता है। मुनिसे अपने पूर्व भवोकी कथा सुनकर जम्मू के हृदय में वैराग्य भावनाका उदय होता है। दीक्षा देनेके पूर्व गणधर जम्बूसे माता-पिता की आज्ञा लेनेको कहते हैं: इय सोऊंण मलहरी वोs ari गणहरो | तावच सुहणिहेलणं, पुच्छसु पिय माया जणं ॥ ८-२ ॥ 3 जम्बूकी माता पुत्रकी वैराग्य भावनाको देखकर मूर्छित होजाती है। कुमारकी वैराग्य-भावनासे सभी कुटुम्बी दुखी दिखते है किन्तु जम्बूका मन दृढ़ था :पिउ मायरिबंधवजणहिं दुक्खिय महिं झावि कव न बुज्झइ । सच्च अज्जु जे तव चरणु वइ-tray लिउ कुमारु किमरुज्झइ ॥८-८|| जम्बूकी निवेरपूर्ण मनस्थितिको देखकर भी पद्मश्री आदि चार कम्यायें उनसे परिणय करती हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548