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३४. ]
अनेकान्त
[ वर्ष
प्रकाश देनेवाला वह, शायद अपने प्रति अंधकारके
परन्तु एक और है तीसरा चित्र सिवा किमीकी कल्पना भी नहीं कर पा रहा है।
___ यह ? यह कौन ? जिसे अपनी ही सुध नहीं है. अपने अस्तित्व तकसे बेखबर है. क्या ऐमा व्यक्ति दुनियादार हो
___ हॉ. यह आदमी है आदमी। यह न कलाकार है सकता है ? और जो दुनियादार नहीं है. उस विश्व
न दुनियादार । यह तो वह है जो कलाके पीछे पड़कर वेदनासे व्यथित मानवको दुनियामे रहनेका क्या
न दुनियासे दूर हटना चाहता है. न कुशलताका अधिकार है ?
आश्रय लेकर दुनिया में रहना चाहता है। यह यशमे
भागता है. पर वह उसके पीछे दौड़ता है। दुनियाको एक दूसरा चित्र
वह छोडना चाहता है. वह उसे नहीं छोड़ना चाहती। एक लेग्यक है. जो वक्ता भी है। शरीरसे सुन्दर, इमन विश्वके लिए अपनेको निर्मोही बना लिया है, वाणीमे माधुर्य । श्राँग्खामे चपलता. कार्यमे कुशलता। पर उसके प्रति मोह बढ़ता जाता है। दुनियादारने पॉवोमें स्फति, अंगुलियोंमें चुटकी। कला और साधना पूछा, उत्तर मिला मै कलाकार हूँ। कलाकारका उत्तर ऋषियोंकी थाथी है. हमें तो चाहिए पैमा। पैसा मिले मिला कि वह दुनियादार है। लेकिन वह स्वयं कहता इसी लिए लिखते है। लिखा कि टोली तैयार है. और जानता नहीं कि वह क्या है। बड़ा अजीब अग्वबारवाले मित्र है। व्यवसायी है तो विज्ञापनका मामला है। श्रीर माधना बाजार गर्म है। मभा-मोमाइटी. चाय-पार्टी. मीटिङ्ग- माधना साधना क्या ? वह स्वयं नही जानता वीटिङ्ग. गप-शपमे उन्हें सबके आगे देखा जा सकता कि उसकी साधना क्या है। उसे अचरज है कि मब है। दिग्वानवाले माथ ही जा रहते है।
उसके पीछे हाथ धोकर क्यो पड़े है। कहता है कि मैं __ यो तादात्म्य किसी वस्तुसे नहीं. पर जा बैठे तो कुछ नहीं। किसीका उसे कुछ नहीं चाहिए सब तो सबके ऊपर । पत्रिकाओने छापा. नेताओंका आशीर्वाद छाड़ दे रहा है । लो यह फेका, फेंक ही तो दिया। मिला. वाणीकी कुशलताने कानोंको आनन्द दिया. लोगोने कहा नहीं जी यह पक्का कलाकार है. पूरा रुप और ऑघोकी मोहकताने विश्वास दिलाया और साधक है। देखो न, कैसी सीधी पर चुभने वाली बातें यो मान लिए गये चाटीके कलाकार । नाम बढ़ा, यश करता है ! क्या ऐसा-वैसा दुनियादार इतनी गहरी मिला और धन भी घरमें आने लगा।
कह सकता है । यह जीवनका कलाकार है। लेकिन ?
हॉ. है. होगा। पर' लेकिन कौन जानता है भीतर क्या है ! इतना
पर उसके भीतरका कौन जान पाया है ? उसने नाम, यश श्रीर धन पल्ले पड़नेपर भी ऐसी कौन-सी
अब तक कहा, सुना तथा समझाया। माना किसीने शक्ति है जो भीतर ही भीतर चोट कर रही है. पीडित
नहीं। क्या माने? कर रही है। पर दमरोंको इससे क्या। इसे अपनी सुध है, दृसगेंकी हो तो हो। हीङ्ग लगे न फिटकरी रङ्ग चोखा लानेमे कुशल तो वे हैं ही। ऐसे ही चित्र प्रथम ?-दुख. किन्तु स्वयंके लिए सुख । श्रादमी तो होते हैं दुनियादार । हॉ. साहब इन्हें चित्र द्वितीय -सुग्व, किन्तु अन्तमें दुख । ही होता है अधिकार कि वे दुनियामें रहें।
चित्र तृतीय-मुख-दुखकी आँख-मिचौनी।