Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्राभार
सम्प्रत्यस्ति ने केवली किल कलौ त्रैलोक्य चूड़ामणि ।
स्तद्वाचः परमास्तेऽत्र भरतक्षेत्रे जगतिका ॥ सद्रत्नत्रयधारिणो यतिवरांस्तेषां समालम्बनं ।
तत्पूजा जिनवाचिपूजनमतः सामाज्जिनः पूजतिः ।। पद्मनंदी पं. ॥
वर्तमान में इस कार्यकाल में तीन लोक के पूज्य केवली भगवान इस भरतक्षेत्र में साक्षात् नहीं हैं तथापि समस्त भरतक्षेत्र में जगत्प्रकाशिनी केवली भगवान की वाणी मौजद है तथा उस वाणी के आधारस्तम्भ श्रेष्ठ रत्नप्रयधारी मुनि भी है इसलिए उन मुनियों की पूजन तो सरस्वती की पूजन है, तथा सरस्वती की पूजन साक्षात् केवली भगवान की पूजन है ।
आर्ष परम्परा की रक्षा करते हुए पायाम पथ पर चलना भव्यात्मामों का कर्तव्य है। तीर्थंकर के द्वारा प्रत्यक्ष देखी गई, दिव्यध्वनि में प्रस्फुटित तथा गणधर द्वारा गथित वह महान आचार्यों द्वारा प्रसारित जिनवाणी की रक्षा प्रचार-प्रसार, मार्ग प्रभावना नामक एक भावना तथा प्रभावना नामक सम्यग्दर्शन का अंग है।
युग प्रमुख प्राचार्य श्री के हीरक जयन्ति वर्ष के उपलक्ष में हमें जिनवासी के प्रसार के लिये एक अपूर्व अवसर प्राप्त हुआ है । वर्तमान युग में प्राचार्यश्री ने समाज व देश के लिए अपना जो त्याग और दया का अनुदान दिया है वह भारत के इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा। ग्रन्थ प्रकाशनाथं हमारे सानिध या नेतृत्व प्रदाता पूज्य उपाध्याय श्री भरतसागर जी महाराज ब निदेशिका तथा जिन्होंने परिश्रम द्वारा ग्रन्थों की खोजकर विशेष सहयोग दिया ऐसी पूज्या प्रा. स्याद्वादमतीमाताजी के लिये मैं शत-शत नमोस्तु-वन्दामि अर्पण करती हूं। साथ ही त्यागीवर्ग, जिन्होंने उचित निर्देशन दिया उनको शत-शत नमन करती हूं। तथा ग्रन्थ के सम्पादक महोदय, श्रीमान् ब्र. पं. धर्मचन्दजी शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य, अन्ध के संशोधक तथा अन्य प्रकाशनार्थ अनुमति प्रदाता ग्रन्थमाला एवं ग्रन्थ प्रकासनाचं अमूल्य निधि का सहयोग देने वाले द्रव्यदाता श्रीमती कल्पना