Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 19
________________ आलोक प्रज्ञा का की श्रुति, धर्म के प्रति श्रद्धा और संयम में पराक्रम—यह चतुष्क दुर्लभ है, इसका संज्ञान होना भी दुर्लभ है। स्वतन्त्रता की सीमा ११. ज्ञानात्मा नाम संबुद्धः, कषायात्मा नियन्त्रितः । स्वतन्त्रतायाः सोमैषा, स्वयं निर्धारिता भवेत् ॥ भंते ! स्वतन्त्रता की सीमा क्या है ? वत्स ! ज्ञान-आत्मा जाग जाए और कषाय-आत्मा का नियंत्रण हो जाए, यही स्वतंत्रता की सीमा निर्धारित है। १२. भयः प्रलोभन द्वेष, आवेशो हीनभावना । अहंभावो लोकवाद, एतैः स्यादप्रभाविता॥ भंते ! संकल्प की स्वतन्त्रता कब होती है ? वत्स ! जब स्वतन्त्रता भय, प्रलोभन, द्वेष, आवेश, हीनभावना, अहंकार और लोकवाद से अप्रभावित रहती है, तब संकल्प की स्वतंत्रता फलित होती है। धर्म का आदि-बिन्दु १३. धर्मस्यादिपदं किं स्याद्, जिज्ञासा मम वर्तते । इन्द्रियातीतविज्ञानं, धर्मस्यादिपदं मतम् ॥ गुरुदेव ! मैं जानना चाहता हूं कि धर्म का आदि-बिन्दु क्या वत्स ! धर्म का आदि-बिन्दु है इन्द्रियातीत चेतना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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