Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 80
________________ धर्म का दर्शन और तत्त्व का निश्चय प्रज्ञा से होता है। इससे ज्ञात होता है कि प्रज्ञा इन्द्रियज्ञान से प्राप्त प्रत्ययों का विवेक करने वाली बुद्धि से परे का ज्ञान जैन साहित्य में अनेक लब्धियां या ऋद्धियां वर्णित हैं। उन लब्धियों में एक लब्धि है - प्रज्ञा श्रमण। प्रज्ञा श्रमण मुनि अध्ययन किए बिना ही सर्वश्रुत का पारगामी होता है। वह चतुर्दशपूर्वी के प्रश्नों का भी समाधान दे सकता है। अदृष्ट, अश्रुत और अनालोचित अर्थ जैसे ही सामने आता है वैसे ही उसका यथार्थ बोध हो जाता है। वह औत्पत्तिकी प्रज्ञा है। wain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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