Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 70
________________ आलोक प्रज्ञा का मानसिक संतुलन के घटक १५६. सतर्कता विचारश्च, व्यवहारो मनोदशा । मनःसंतुलनस्यैते, चत्वारो घटकाः स्मृताः।। आर्यवर ! मन-सन्तुलन के घटक कौनसे हैं ? वत्स ! उसके चार घटक हैं-जागरूकता, विचार, व्यवहार और मानसिक दशा। हृदय-परिवर्तन १६०. कस्य कः परिणामः स्यात्, क्रिया चाप्यनियन्त्रिता । धारणा क्रियते मिथ्या, मनोदशाप्यसंयता ।। १६१. जायतेऽस्यामवस्थायां, दुष्करं क्रियाविपाकयोश्चिन्ता, हृदयं परिवर्तनम् । परिवर्तयेत् ।। गुरुदेव ! किस अवस्था में वृत्ति का परिवर्तन कठिन है और उसे बदलने की भूमिका क्या हो सकती है ? वत्स ! किस क्रिया का क्या परिणाम होता है, इसका निश्चय न हो और किस परिणाम की हेतुभूत क्रिया क्या होती है यह भी अनिश्चित हो तथा कर्म और उसके परिणाम की धारणा मिथ्या हो और मनोदशा भी संयत न हो-इस अवस्था में वृत्ति का परिवर्तन होना कठिन प्रतीत होता है। क्रिया और उसके विपाक का चिन्तन हृदय-परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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