Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 74
________________ मर्यादा का आधार १. संविभागः समभावः, सौहार्द च परस्परम् । व्यवस्था कलहान्मुक्तिः, मर्यादाचारशुद्धये ॥ आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ धर्मसंघ में संविभाग, समभाव, पारस्परिक सौहार्द, व्यवस्था, कलह निवारण और आचारशुद्धि के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया । तेरापंथ का नेतृत्व २. अवीतरागलोकेऽस्मिन् वीतरागप्रकल्पिता । नेतृत्वस्य araस्थेयं, विहिता भिक्षुणा वरा ॥ आचार्य भिक्षु ने इस अवीतराग लोक में वीतराग द्वारा प्रकल्पित नेतृत्व की श्रेष्ठ व्यवस्था का सूत्रपात किया । छोटा कौन ? बड़ा कौन ? ३. नो होनो न विशिष्टोऽस्ति निश्चयप्रतिपादनम् । हीनः स्यादतिरिक्तोऽपि व्यवहारनयस्थितौ ॥ 1 गुरुदेव ! आचारांग का सूक्त है - 'नो हीणे नो अइरित्ते'न कोई हीन है और न कोई अतिरिक्त । क्या इन दोनों वचनों में परस्पर विरोधाभास नहीं है ? वत्स ! न कोई हीन है और न कोई विशिष्ट हैं - यह निश्चय नय का प्रतिपादन है । व्यवहार नय की स्थिति में हीन और विशिष्ट - दोनों होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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