Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 77
________________ आलोक प्रज्ञा का छोड़ना चाहता है तथा जो संयम और नियम को उपलब्ध है. वह अनुशासन का पालन कर सकता है । ११. धृतिः सहिष्णुता शक्तिरात्मविश्वाससंपदा । ___ यस्मिन्नेते गुणाः सन्ति, स स्पृशत्यनुशासनम् ॥ जिसके जीवन में धृति, सहिष्णुता, शक्ति और आत्मविश्वास की सम्पदा-ये चार गुण होते हैं, वह अनुशासन का पालन कर सकता है। मान्य कौन ? १२. कश्चिदर्थकरो भव्यः, कश्चिद् मानकरो भवेत् । कश्चिद् द्वयप्रवृत्तः स्यात्, कश्चिद् द्वयपराङ्मुखः ॥ कोई शिष्य प्रयोजन सिद्ध करने वाला होता है और कोई मानी होता है। किसी में ये दोनों होते हैं और कोई इन दोनों से पराङ मुख होता है । १३. साधयेद् यो गणस्यार्थ, स श्रेयान सम्मतो भवेत् । अमानी मन्यते सर्वैः, न मतो मानकृद् भवेत् ।। जो साधु गण के प्रयोजन को सिद्ध करता है वह गण में श्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में मान्य होता है । सब लोग अमानी को ही मान्य करते हैं, सम्मान देते हैं । अहंकारी को कोई मान्य नहीं करता, वह सम्मत नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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