Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 69
________________ ५४ आलोक प्रज्ञा का का मूल कारण है-अप्रशस्त विचार । उन दोनों के मूल में है भीतर में स्थित भाव । वह शुद्ध और अशुद्ध-दोनों प्रकार का होता है। अध्यात्म का सूत्र १५७. आचारो व्यवहारश्च, भावचितनसंभवः । असौ स्यादात्मनः प्रेक्षा, स्यादऽध्यात्ममिदं महत् ॥ भन्ते ! अध्यात्म का सूत्र क्या है ? वत्स ! अपने आपकी प्रेक्षा करना-अपने आपको देखना, इसका नाम है अध्यात्म । आचार और व्यवहार के दो स्रोत हैं-भाव और चिन्तन । कोनसा आचार और व्यवहार किस भाव और चिन्तन से उपजा है, इसकी सूक्ष्मता से प्रेक्षा करना अध्यात्म का महान् सूत्र है। स्वभाव-परिवर्तन के सूत्र १५८. आस्थाबन्धो विवेकश्च, संकल्पश्च मनोबलम् । मनुष्ये तेन सामर्थ्य, स्वभावपरिवर्तने ॥ प्रभो ! स्वभाव-परिवर्तन के सूत्र क्या हैं ? वत्स ! वे सूत्र हैं----आस्थाबन्ध [सुदृढ आस्था], विवेक, संकल्प और मनोबल । ये चार विशेषताएं ही मनुष्य में स्वभावपरिवर्तन का सामर्थ्य पैदा करती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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