Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 52
________________ पालक प्रज्ञा का कौन भीतर ? कौन बाहर ? १०७. प्रमत्तो वञ्चको दृष्टाडासक्तः प्रज्वलिताशयः । दुःखं परकृतं जानन्, बहिस्तिष्ठति मानवः ।। भन्ते ! भीतर कौन है और बाहर कौन है ? वत्स ! जो प्रमत्त है, वंचना करता है, दृष्ट [ इन्द्रिय-विषय ] में आसक्त रहता है, जिसके कषाय प्रज्वलित रहते हैं और जो दुःख को परकृत मानता है, वह बाहर है । १०८. अत्रमत्तोऽवञ्चकश्च दृष्टाऽसक्तः शमंगतः । दुःखमारम्भजं जानन्, अन्तस्तिष्ठति मानवः ॥ 1 ३७ जो अप्रमत्त है, अवंचक है, दृष्ट [ इन्द्रिय-विषय ] के प्रति अनासक्त है, जिसके कषाय उपशान्त हैं और जो दुःख को आरम्भज - हिंसामूलक मानता है, वह भीतर है । संविभाग की सिद्धि १०६. संविभागो निर्ममत्वं, मुक्त्वा क्वापि न सिद्ध्यति । ममत्वचेतना तेन, परिष्कार्या सुमुक्षुभिः ।। Jain Education International भन्ते ! भगवान् ने संविभाग को बहुत महत्त्व दिया है । उसकी सिद्धि किस प्रकार हो सकती है ? वत्स ! निर्ममत्व की सिद्धि के बिना संविभाग कहीं भी सिद्ध नहीं होता । अतः मुमुक्षु को ममत्व - चेतना का परिष्कार करना चाहिए । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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