Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ आलोक प्रज्ञा का १५ ४४. अजल्पनं भवेन्मौनं, मौनं स्यादल्पजल्पनम् । अविकल्पनमेवाऽपि, मौनमन्तरुदाहृतम् ॥ किसी साधक ने पूछा- गुरुदेव ! मैं मौन की साधना करना चाहता हूं। उसका स्वरूप क्या है ? आचार्य ने कहा कुछ न बोलना मौन है । कम बोलना भी मौन है। ये दोनों वाचिक मौन हैं। निर्विकल्प अवस्था में जाना-स्वरयन्त्र को निष्क्रिय बनाना अन्तमौन है । सर्वांगीण शिक्षाप्रणाली ४५. विकासो बौद्धिको युक्तः, तथ्यानां ग्रहणे भवेत् । विकासो मानसो युक्तः, समस्या जेतुमुत्कटाः ॥ ४६. विकासो भावनानां च, युक्तो दायित्वपालने । शरीरसिद्धिरेतेषामाधार इति विश्रुतम् ॥ ४७. प्रशिक्षणं विना नैते, संभवन्ति कदाचन । ततः स्वाध्याययोगोऽयं, विद्यार्थिनां प्रवर्तते ।। शिक्षा के क्षेत्र में बहुधा पूछा जाता है--शिक्षा का उद्देश्य क्या है ? समाधान की भाषा में शिक्षा का पहला उद्देश्य हैबौद्धिक विकास । इससे व्यक्ति तथ्यों को ग्रहण करने में सक्षम होता है । शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है-मानसिक विकास । इससे मनुष्य अनुकूल-प्रतिकूल सभी उत्कट समस्याओं को झेलने में समर्थ बनता है । शिक्षा का तीसरा उद्देश्य है-भावात्मक विकास । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80