Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ आलोक प्रज्ञा का वत्स ! संयम । जैन धर्म का आदर्श है वीतराग बनना । उस दिशा में बढ़ने का साधन है संयम । जो व्यक्ति संयम के प्रवक्ता होते हैं, वे विश्व के नियामक होते हैं । हिंसा: प्रमाद या बध ? १६. सर्वे प्राणान हतव्याः, ओहसाऽसो प्रकोतता । कि हिंसा वध एवास्ति, प्रमादो वा भवेदसौ ? ६७. वधः काय प्रमादश्च, कारणं नाम विद्यते । अप्रमत्तो वधार्थ नो, नो संतापाय चेष्टते ॥ भगवन् ! मैंने आचारांग सूत्र के 'शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययन को पढा है। वहां षटकाय के वध को हिंसा कहा गया है। क्या किसी का वध करना ही हिंसा है अथवा प्रमाद भी हिंसा है ? ___ वत्स ! भगवान महावीर की वाणी में किसी प्राणी का वध मत करो, यह व्यक्त अहिंसा है । प्रमाद हिंसा है और अप्रमाद अहिंसा है, यह इसकी पृष्ठभूमि में रहा हुआ है । प्रमाद कारण है। वध या हिंसा उसका कार्य है। जो अप्रमत्त होता है, वह किसी का वध करने और किसी को संताप देने की चेष्टा नहीं करता। इच्छा के दो रूप ६८. आत्मरक्षा चात्मतृप्तिः, मुख्यमिच्छाद्वयं भवेत् । इच्छाकुले जगत्यस्मिन्, तदर्थ यतते जनः । यह जगत् इच्छाओं से व्याप्त है । समाज विज्ञान के अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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