Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ आलोक प्रज्ञा का १६ चाहभेद क्यों ? ५७. कामार्थो वर्तते कश्चित, मोक्षार्थी कोऽपि वर्तते । अथित्वस्य विभेदोऽयं, केनास्ति संप्रवर्तितः ॥ .. शिष्य ने पूछा--कोई कामार्थी है—कामभोग को चाहता है। कोई मोक्षार्थी है-मोक्ष को चाहता है। यह चाहभेद किसके द्वारा प्रवर्तित होता है ? ५८. मोहप्रवर्तितः कामः, मोक्षः स्वभाववर्तितः । हेतुभेदेन चाथित्वभेदो लोके प्रविद्यते । आचार्य ने कहा-कामभोग मोह के द्वारा प्रवर्तित है, मोक्ष स्वभाव के द्वारा प्रवर्तित है। लोक में यह चाहभेद हेतुभेदकारणों की विभिन्नता से होता है। अध्यात्म का अवतरण ? ५६. ग्रन्थि भेदो नवा तावद्, अध्यात्म खलु कल्पना । भिन्ने ग्रन्थौ पुद्गलानां, साम्राज्यं खलु कल्पना ॥ गुरुदेव ! जीवन में अध्यात्म कब उतरता है ? वत्स ! जब तक ग्रन्थिभेद नहीं होता तब तक अध्यात्म कोरी कल्पना है। जब अन्थिभेद हो जाता है तब पुद्गलों का साम्राज्य भी कोरी कल्पना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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