Book Title: Alok Pragna ka
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 43
________________ २८ आलोक प्रज्ञा का उस स्थिति में निमित्त उपादान को प्रभावित करता रहेगा, फिर उपादान का विशेष मूल्य क्या है ? वत्स ! उपादान सापेक्ष होता है, तभी निमित्त सहकारी बनता है । यदि उपादान निरपेक्ष हो तो निमित्त अकिञ्चित्कर बन जाता है । संघबद्ध साधना का अधिकारी ८२. अहंकारी भवेत् शान्तः कुर्यादात्मनिरीक्षणम् । अपूर्णतामनुभवेत्, पारस्पर्यमपेक्षितम् || भगवन् ! कौन व्यक्ति संघबद्ध साधना कर सकता है ? वत्स ! १. जिस व्यक्ति का अहंकार शान्त हो जाता है २. जो आत्मनिरीक्षण करता है ३. जो अपनी अपूर्णता का अनुभव करता है ४. जो पारस्परिक सहयोग की अपेक्षा रखता है - वही व्यक्ति संघबद्ध साधना कर सकता है । धर्म का सत्य ८३. सत्यं धर्मस्य किं नाम, जिज्ञासितमिदं मम । अशुमेन शुभस्याऽयं, संघर्षो धर्म उच्यते ॥ गुरुवर ! धर्म का सत्य क्या है ? यह मेरी जिज्ञासा है । भद्र ! अशुभ के साथ शुभ का संघर्ष ही धर्म कहलाता है । अनुभव कैसे जागे ? ८४. अकरणस्य संकल्पः, भावो मनोऽपि तद्गतम् । परात्मना च तादात्म्यं प्रस्फुटोऽनुभवस्तदा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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