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आलोक प्रज्ञा का
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४४. अजल्पनं भवेन्मौनं, मौनं स्यादल्पजल्पनम् ।
अविकल्पनमेवाऽपि, मौनमन्तरुदाहृतम् ॥
किसी साधक ने पूछा- गुरुदेव ! मैं मौन की साधना करना चाहता हूं। उसका स्वरूप क्या है ?
आचार्य ने कहा कुछ न बोलना मौन है । कम बोलना भी मौन है। ये दोनों वाचिक मौन हैं। निर्विकल्प अवस्था में जाना-स्वरयन्त्र को निष्क्रिय बनाना अन्तमौन है ।
सर्वांगीण शिक्षाप्रणाली
४५. विकासो बौद्धिको युक्तः, तथ्यानां ग्रहणे भवेत् ।
विकासो मानसो युक्तः, समस्या जेतुमुत्कटाः ॥
४६. विकासो भावनानां च, युक्तो दायित्वपालने ।
शरीरसिद्धिरेतेषामाधार इति विश्रुतम् ॥
४७. प्रशिक्षणं विना नैते, संभवन्ति कदाचन ।
ततः स्वाध्याययोगोऽयं, विद्यार्थिनां प्रवर्तते ।।
शिक्षा के क्षेत्र में बहुधा पूछा जाता है--शिक्षा का उद्देश्य क्या है ? समाधान की भाषा में शिक्षा का पहला उद्देश्य हैबौद्धिक विकास । इससे व्यक्ति तथ्यों को ग्रहण करने में सक्षम होता है । शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है-मानसिक विकास । इससे मनुष्य अनुकूल-प्रतिकूल सभी उत्कट समस्याओं को झेलने में समर्थ बनता है । शिक्षा का तीसरा उद्देश्य है-भावात्मक विकास ।
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