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आलोक प्रज्ञा का
क्रिया करे उसी में मन लगा रहे, भावक्रिया है। क्रिया कुछ करे और मन अन्य प्रवृत्ति में रहे, द्रव्यक्रिया है ।
प्रतिक्रिया क्यों ?
४२. कवायाकुलचित्तस्य, प्रतिक्रिया प्रतिक्रिया ।
उपशान्तकषायस्य, प्रतिक्रियाऽप्रतिक्रिया ॥
गुरुदेव ! प्रतिक्रिया क्यों होती है ? उससे किस प्रकार विरति हो सकती है ? ___ वत्स ! जिसका चित्त कषाय से आकुल होता है, उसके बार-बार प्रतिक्रिया होती रहती है। जिसका कषाय उपशान्त हो जाता है, उसके कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।
मिताहार और मौन
४३. शक्तेर्वृद्धिः क्षतेः पूतिः, विजातीयस्य निर्गमः ।
लाघवञ्च प्रसादश्च, भोजने परिवीक्ष्यताम् ।।
आचार्य के सान्निध्य में संगोष्ठी का आयोजन था। प्रसंग चला कि भोजन को किस दृष्टि से देखा जाए ? आचार्य ने कहा -भोजन को पांच दृष्टियों से देखना आवश्यक है-१. जिससे शरीर की शक्ति बनी रहे २. काम करने से शरीर की जिन कोशिकाओं को क्षति होती है, उनकी पूर्ति होती रहे ३. समय पर विजातीय मलों का निर्गमन होता रहे ४. शरीर में हल्कापन बना रहे ५. मन की प्रसन्नता भंग न हो।
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