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आलोक प्रज्ञा का
परोक्षशान में अस्पष्टता होती है। वहां अनुमान होता है और बाहर और भीतर का भेद बना रहता है। जब प्रत्यक्षज्ञान होता है तब स्पष्टता की स्थिति बनती है। उसी अवस्था में समाधि या समाधान प्राप्त होता है ।
३६. अस्पष्टता भवेद् यत्राऽसमाधिस्तत्र जायते ।
स्पष्टतायां समाधिः स्याद्, ज्ञानजो व्यवहारजः ॥
जहां अस्पष्टता होती है वहां असमाधि होती है। समाधि स्पष्टता की स्थिति में होती है। इसके आधार पर उसके दो भेद बन जाते हैं.--ज्ञानजनित समाधि और व्यवहारजनित समाधि ।
भावक्रिया : द्रव्यक्रिया
४०. साफल्यस्य रहस्यं कि, ज्ञातुमिच्छामि सम्प्रति ।
भावः साफल्यसूत्रं स्याद्, द्रव्यं वैफल्यकारणम् ॥ भन्ते ! मैं जानना चाहता हूं कि सफलता का रहस्य क्या
वत्स ! भावक्रिया सफलता का सूत्र है और द्रव्य क्रिया असफलता का सूत्र है।
४१. जानन् करोमि भावोऽयऽमजानन् द्रव्यमुच्यते ।
तन्मना इति भावोऽयं, द्रव्यमन्यमना भवेत् ॥ गुरुदेव ! द्रव्य और भाव से आपका तात्पर्य क्या है ?
वत्स ! जानते हुए यह मैं कर रहा हूं-यह भावक्रिया है । अनजान में कोई क्रिया करना-यह द्रव्यक्रिया है। अथवा जो
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