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अतीत और वर्तमान
३५. अतीतं स्मर्यते भूयो, निसर्गोऽयं मनुष्याणां, सन्मते !
वर्तमानमुपेक्ष्यते । परिवर्त्यताम् ॥
३६. अनुभूतिर्वर्तमानेऽतीते तर्कः
स्मृतिर्भवेत् ।
तर्काद् गतिः प्रवर्तेत, साऽनुभूतौ विरम्यते ॥
आलोक प्रशा का
भगवान् महावीर ने गौतम को संबोधित करते हुए कहाहे सन्मते ! मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह अतीत को बारबार याद करता है और वर्तमान को उपेक्षित कर देता है । तुम इसे बदलो । तुम्हें जो कुछ जानना है, जान लो उसमें किञ्चित् प्रमाद मत करो ।
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वर्तमान का क्षण अनुभूति का क्षण होता है । अतीत का क्षण स्मृति और तर्क का क्षण होता है। तर्क से जो गति प्रवृत्त होती है, वह अनुभूति में विराम पा जाती है ।
परोक्षज्ञान और समाधि
३७. परोक्षे
विपर्ययः ।
संप्रजायन्ते, बाधास्तत्र निराशा विचिकित्सा च, शंका क्वचिच्च संशयः ||
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परोक्षज्ञान कई बाधाओं को उत्पन्न करता है । वे बाधाएं हैं विपर्यय, निराशा, विचिकित्सा, शंका और संशय ।
३८. परोक्षं विद्यतेऽस्पष्टं, बाह्यान्तरविभेदकृत् । सानुमानं च प्रत्यक्षं, स्पष्टं तेन समाधिकृत् ॥
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