Book Title: Agam Suttani Satikam Part 29 Uttaradhyayanaani
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text ________________
२५६
उत्तराध्ययन मूलसूत्रम्-२-३६/१४९९ गंधओ रसओ चेव. भइए संठाणओवि ।। मू.(१५००)
फासओ गुरुए जे उ, भइए से उ वन्नओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०१) फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वन्नओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०२) फासओ सीअए जे उ, भइए से उ वनाओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०३) फासओ उण्हए जे उ. भइए से उ वनाओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०४) फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वनाओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०५) फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उ वन्नओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू. (१५०६) परिमंडलसंठाणे, भइए से उ वनाओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ मू.(१५०७) संठाणओ भवेवटे, भइए से उवण्णओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ मू.(१५०८) संठाणओ भवे तंसे, भइए से उवण्णओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ मू.(१५०९) संगणओ य चउरंसे, भइए से उवण्याओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ मू.(१५१०) जे आययसंठाणे, भइए से उवण्णओ।
गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि य॥ व. वर्णतो गन्धतश्चैव रसतः स्पर्शतस्तथा संस्थानतश्च, अयमर्थः-वर्णादन्यपञ्चाश्रित्य 'विज्ञेयः' ज्ञातव्य: 'परिणामः' स्वरूपावस्थितानामेव वर्णाद्यन्यथाऽन्यथाभवनरूप: 'तेषाम्' इति परमाणूनां स्कन्धानां च 'पञ्चधा' पञ्चप्रकाराः, मेदहेतोर्वर्णाद्युपधेः पञ्चविधत्वदिति भावः । प्रत्येकमेषामेवोत्तरभेदानाह-'वर्णतः परिणताः' वर्णपरिणामभाज इत्यर्थः 'ये' अण्वादयः 'तुः' पूरणे पञ्चधा ते 'प्रकीर्तिताः' प्रकर्पण सन्देहापनेतृत्वलक्षणेन संशब्दिताः, तानेवाहकृष्णाः कज्जलादिवत्, नीला: नील्यादिवत् लोहिता हिङ्गुलुकादिवत् हारिद्राः हरिद्रादिवत् शुक्लाः शङ्खादिवत् 'तथे ति समुच्चये। ___ 'गन्धतो' इत्यादीनि स्पष्टान्येव नवरं 'सुब्भि' (गन्ध)त्ति सुरभिगन्धो यस्मिन् स तथाविधः परिणामो येषां तेऽमी सुरभिगन्धपरिणामाः श्रीखण्डादिवत्, 'दुब्भी'त्ति दुरभिर्गन्धो येषां ते दुरभिगन्धा स्नशुनादिवत्, तिक्ताश्च कोसातक्यादिवत् कटुकाश्च सुण्ठ्यादिवत् कपायाश्च अपक्वकपित्थादिवत्तिक्तकटुकषायाः आम्ला: आम्लवेतसादिवत् मधुराः शर्कादिवत् कर्कशाः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316